Tuesday, 31 December 2013

तुम्हारी
याद में बादल
बेसब्र हो बरसे रात भर
मचलती रही
एहसासों की चिंगारियां
मर्म दिल के
बहते रहे रात भर
तन्हाइयों का रोना
बेसुरा हो गया
तुम्हारी आवाज़े
कानों में ऐसे
घुलती रही रात भर
सिलवटों की परते
गिनता रहा गुज़रता पहर
न तुम सोये, न मैं सोयी
ख्याल बुनती रही
रात भर……….

Monday, 30 December 2013

मैं अक्सर 
सँकरी, तंग काँटों से 
भरी अतीत की
गलियों से गुज़रा करती हूँ
जहाँ नफरतों से 
बदबूदाती ईर्षा की 
सीलन फ़ैली है
गलते दिनों की पपड़ियाँ
झड़ती रहती है
रातों की लाशों से 
राख उड़ती है
कुछ पोटलियाँ बंधी 
कहीं किसी मोड़ पर 
दिख जाती है ख्वाबों की
जो इंतज़ार के मैले पानी
से सनी लगती है
कितनी ही तारीख़े मडराती 
नज़र आती है उनपर
यही मेरी धूप ने
दम तोड़ दिया होगा
दीयों ने अपनी जात
बदल दी यही
और अरमानों ने
खुदखुशी की होगी
ख़ाली चेहरे से रंग
आँसुओं से बह गये
बुझती आँखों ने तभी
अंधकार का कफ़न
ओढ़ लिया
यही कहीं मेरी
चाहतों की दुनिया ने
तड़प कर 
अपनी साँसों को
अलविदा कहा होगा
तभी ये गलियां
अपनी ओर 
मुझे बुलाती है और
मैं अक्सर इन 
सँकरी, तंग काँटों से
भरी अतीत की 
गलियों से गुज़रा करती हूँ……..

Sunday, 22 December 2013

कुछ याद नहीं
शाम ढलती कब
जाने कब सवेरा दिन में बदले

पल यूँ बीतें
जैसे बह गया पानी
जाने कब तारीख़े बर्फ़ में बदले

मन का कौना
जैसे रह गया ख़ाली
जाने कब मेरे बेगाने में बदले

अज़ीब है यादे
जैसे हवा से बातें
जाने कब ये आँधियों में बदले

चाहती हूँ रुकना
जैसे घर हूँ मैं
जाने कब सपने हक़ीक़त में बदले…….

Saturday, 21 December 2013

मेरे सपने मुझे अब सोने नहीं देते
मेरी पलकों को नम होने नहीं देते

यूँ तो देते हैं मुझे होंसला बहुत पर
मुतमईन कभी मुझे होने नहीं देते

फ़िरते रहते हैं ख्यालों की गलियों में
मेरी सोच को तन्हा होने नहीं देते

एक टूक घूरती है दीवारें रात भर
पहरा हो कोई जैसे रोने नहीं देते

इक बोझ है मजबूरियों का मुझ पर
मेरी ख्वाहिशों को पूरा होने नहीं देते

मालूम है कलम में मेरी है शऊर मगर
कांटे बागबाँ को मुअत्तर होने नहीं देते

Friday, 20 December 2013

मैं झड़ जाऊँ, सूखें पत्ते सी
ख़िल जाऊँ या
फ़िर बिख़र जाऊँ

महकती रहूँ, शोख़ पवन सी
महकाती रहूँ या
मुरझा जाऊँ

कुछ कह दूँ, गुज़रती शाम सी
चुप रहूँ या
रो जाऊँ

मैं सिमटी हूँ, आह सी
तू कह दे या
मैं बिछ जाऊँ

मैं रुकी हूँ, तेरे एक इशारे भर के लिए
तू कह दे या
मैं मुड़ जाऊँ ……..

Wednesday, 4 December 2013

तेरे ख़त
जो महका करते थे
तेरी खुशबू से
तेरे एहसासों से
आज मुरझाए से लग रहे हैं.....

तेरे लफ्ज़ जो
उतरा करते थे
सीधे दिल में
जो रोशन करते थे
मेरे दोनों कायनात
आज धुंधला से गए हैं....

चुप्पी लगती है अपने रिश्ते कि
जो अब अल्फ़ाज़ों में भी
उतर आयी है

मैं शब्द पढती हूँ
पर मायने नहीं समझ पाती
क्या हुआ है ऐसा
तुम यादों से भी क्यूँ
दूर जाने लगी हो

रह जाओ न यही
इन लफ़्ज़ों में, इन एहसासों में
अपने खतों में…..मेरे लिए 
तुम रह जाओ न…….
जाने कैसे
कोई मेरे दिल में
कल हुआ था दाखिल
जाने कैसे
किसी ने मेरी
नींद चुराई थी

मौसम सर्द था
मनचली भी पुरवाई थी

भीगी पलकों से
बुन रही थी
ख्वाब मोहब्बत का
टूटी जो नींद
हाथ बस
रुसवाई थी

यादों के आँगन में
शायद कुछ फूल
फिर खिले है
जिसकी खुशबु से
चाँदनी भी बोराई थी

तेरी यादों की बारात
हर रात जवां होती है
कल भी शायद
वही से शहनाई 
की आवाज़ आयी थी

मन को फिर भर्म
हुआ होगा
तभी तो मेरे दिल की
कुण्डी तुमने खटखायी थी

जानती हूँ वो तुम ही थे
जो मेरे दिल में फिर
दाखिल हुआ
तुमने ही मेरी 
नींद चुराई थी ……….
चंद लम्हे
तेरे साथ के
ख़ैरात से मेरी झोली
में कुछ जो आ गिरे

सूत लगा
मेरी जान लगा
पूरी शिद्दत से
वक़्त ने फिर वापस लिए

रोज़ ढोती हूँ
बोझ साँसों का
ये ज़िन्दगी बड़ी भारी लगे

अफ़सोस
नाकाम मोहब्बत का
कोई ज़िक्र भी करे
तो ताना लगे

अरदास
गुज़रते लम्हों से
इतनी थम के न गुज़र
की हर पल सदी समान लगे ……

Tuesday, 3 December 2013

मैं इतनी पूरी तो नहीं
और न इतनी खाली हूँ
ये दुनिया मुझ से बनती है
इस दुनिया से मैं नहीं हूँ

ज़िन्दगी की 
सांझ होने को आयी
और मेरी धूप की आरज़ू 
इस दुनिया के आँगन में
खत्म हुए जाती है

समय कहता है
अब साँझ अपना ले
पर मुझे अपने
लिय बस एक पहर चाहिए
ये साँझ भी मेरी नहीं है

मुझे तो उस पहर से 
गुज़ारना है 
जिस पहर मैं पूरी हो जाऊँ
मैं तुम संग 
सम्पूर्ण हो जाऊँ……….

Sunday, 1 December 2013



मेरी मोहब्बत का रंग 
उतर आया हो जैसे 
पानी में
ठहरा शांत पानी 
मेरी मोहब्बत के जैसा 

जो तुम्हारे लिए 
ठहरी है एक ही जगह 
कितनी भी हवाएं हो 
बहारों कि 
मेरी मोहब्बत तुम्हारे लिए 
बस वहीँ है 

शांत, ठहरी और 
सिर्फ तुम्हारी 
गहरे प्यार का रंग लिए 

स्याह सी जो 
मुझे उसमे डुबोए रखती है 
चुप सी, खामोश सी 
बस मोहब्बत है 
यकीं है ……
और रंगीन है …..तुम से......

Thursday, 21 November 2013



उदास सहमी सी शाम
पीला शांत सा आसमां
दूर तक कोई नहीं
कोई आवाज़ भी नहीं
पँछी भी शांत से गुज़रते हुए
न जाने का बताया
न फिर आने की बात की
जैसे कुछ मिला नहीं
दिन भर की घुमकड़ी से
ख़ाली हाथ
लौटना पड़ रहा हो घर
इसलिए मुँह लटकाये
उड़े जाते है
ये शाम की नमी है या
तरसते अरमानो की रात
के आने का आगाज़

सम्भल जा ए दिल
फिर रुलाएगी
ख़ामोशी कि ज़ुबाँ
फिर रात मातम में
गुज़रे की शायद…....

Thursday, 14 November 2013

 

वो मिला भी नहीं
मन से मिटा भी नहीं
कैसा हमसफ़र है मेरा
साथ रहा भी नहीं
तन्हा छोड़ा भी नहीं.......

Monday, 11 November 2013

आज फिर लड़खड़ा रही हूँ
भ्रमित मन के कारन
वापस लौट आयी हूँ
वहीं जहाँ से चली थी
सम्भावनाओ कि ओर
फिर देख रही हूँ
अनुभवियों के दृष्टिपटल को घूर
कभी उनके नज़र के आईने को
समझती हूँ ……

और कभी
अपनी सोच की पहुँच को
बहुत कमज़ोर और झरझरी
डोर हो गयी है समझ की
ना जाने कैसे पकते पकते
बीज़ बन गयी मैं
मंज़िलों को देखती थी
न जाने कैसे गालियों में
खो गयी मैं
असमंजस निराशा और
हताश उम्मीदों ने
मुझे जकड़ लिया ….या
बाहरी रौशनी और
सपनो कि उड़ानों ने
मुझे अँधा कर
रेगिस्तान में फेंक दिया
मैं आँखे मलते हुए सबकी
ओर अचरच से देखती हूँ
सबको जानती हूँ पर
क्या जानती हूँ
नहीं पता……

कौन सा नया आयाम है ये
मेरी ज़िन्दगी का
मैं पुराने मैले कपड़े
धूप दिखा पहनती हूँ
ये मैं कहाँ हूँ......... कब तक हूँ
मैं कौन हूँ ……..

Wednesday, 30 October 2013



                     

सुर्ख़ जैसे गुलाब होता है
वैसे ही .....मेरा प्यार है तुम्हारे लिए ....सुर्ख़ .....


जब ख्याल हर्फ़ बन
तुम्हारा नाम लेके
मेरे प्यार के धागे में बंध
माला गुथ सीने से लग
जायें .....

जब ख्वाब
तुम्हारी रंगीली बातों
में रंग कर
मेरी नींदों तक 
आयें ……

जब तुम्हारी याद में
आँखों का
पानी गिरता हुआ .....
गालों पर
चुम्बन रख जाये ....

जब हवाएं चले
मुझे छेड़ती सी
दुप्पटे को ले उड़े .....
और दुप्पटा छुड़ाने
कदम दौड़ते उसके 
पीछे तक जाये .....

जब गहरी काली रातों में
चुप चुप
चाँद को तलाशती हूँ
एक तेज़ चमकता तारा
उस पल जब नज़र
में भर जाये .....

जब महफिलों में महकते लोग
अपनी बासी बातों से
मेरा दिल सुलगा जायें ........
उस पल ……
तुम बहुत याद आये
बहुत याद आये ………

Tuesday, 29 October 2013

करवट बदलती रातों में
मेरे शब्द पंछी बन
ख्यालों कि पगडंडियों पर बैठ
अरमानो के फूल चुगते है

कुछ खाते और 
बाकी अधखाया बिखरा देते है
हर अरमां यूँही
कुछ खाया खाया सा
झूठा किया हुआ.....

बिखरे हुए, अधखाये, झूठे किये
अरमां मेरे....
सड़ने लगे है अब
चीटियां लग गयी है
बास आने लगेगी ....कुछ दिनों में

इतनी दुर्गन्ध और सड़न से
अब तो ....
ये पंछी भी
अपना रास्ता बदल लेंगे
और …….
सुना हो जायेगा
मेरे ख्यालों का बागीचा ......
जब भी ख्यालों में तुम आये
अक्सर ज़ेहन में 
अनगिनत अल्फ़ाज़ों की
बारीशे होने लगी
मैंने कई बार 
उन्हे हथेलियों पर समेट
कागज़ पर उकेरने की कोशिश की
मगर ना जाने क्यूँ
वो अल्फाज़ कागज़ पर 
उतर नहीं पाते
कभी अल्फ़ाज़ों से नज़्म न हो पाये

मैंने हर्फ़ हर्फ़ समेटा
फिर भी ....
नज़्म न बन सकी
सोचती हूँ कहीं ये अल्फाज़
मेरे भीगने के लिए तो नहीं
सिर्फ मुझे भीगो कर
इनकी प्यास बुझ जाये
और कागज़ पर गिर 
इसलिय ये अपना
वजूद खो देते है
समझ सकती हूँ .....

ये ज़िन्दगी 
अब अल्फ़ाज़ों से नहीं रही
शायद ...
पर ये अल्फाज़ ही 
मेरी ज़िन्दगी बन गए है
और मैं ये ज़िन्दगी ऐसे ही जीना चाहती हूँ .....
भीगती हुई ....
तुम्हारे ख्यालों के अल्फाज़ भरी 
बारिशों में ....यूँही……

Friday, 25 October 2013

बहाने कम नहीं पड़ते
ज़िन्दगी गुजारने के लिए
फिर भी यूँ लगता है ....कुछ कमी है

सवेरे से जो गूंथती हूँ
ये नहीं वो ....वो नहीं ये
का सिलसिला
बस रात तक खीच ही जाता है
एक दिन और बीत गया
तसल्ली मिली पर.....कुछ कमी है

गुमराह है तलाश मेरी
मगर इस मन को सुकूं नहीं
निकल पड़ता है
ख्यालों का बस्ता लगा कर
हर सड़क हर गली
जानता है कोई कूचा न मिलेगा
फिरता लिए बोझा
शायद इत्मीनान है पर.....कुछ कमी है

अक्सर अकेले ताकती आसमां को
कभी देर रात तक दीवारों को
गहरी लम्बी साँस ले कर
अफ़सोस निभा लेती हूँ अपनी
तन्हाईयों संग
साथ मिल जाता है दोनों को
पर ......कुछ कमी है

हाँ....
सब हो ही जाता है
वक़्त गुज़र ही जाता है
उम्र की संख्या बदलती ही रहेंगी
पर फिर भी ....कुछ है जो
उदास कर जाया करेगा
नम आँखों से ....कहना भी होगा तब
कुछ नहीं ....बस यूँही....
पर मैं जानती हूँ.....कुछ कमी है ……

मैंने तो यूँही लिखा था बस
नहीं जानती थी .....इबारत सच हो जाएगी

बनावट तो शब्दों की ही थी
नहीं जानती थी ....इनसे तबाही मच जाएगी

मेरे ख़ुलूस में जो ख्याल मुकम्मल न था
नहीं जानती थी .....वही वजह बन जाएगी

ज़र्द हुई नब्ज़ धडकनों की यूँ
नहीं जानती थी ....की जान पर बन आएगी

तकल्लुफ हुआ तुम्हें सोच शर्मिंदा हूँ
नहीं जानती थी ......सुई तलवार हो जाएगी

मेरी मोहब्बत का खुदा गवाह रहा है
नहीं जानती थी ....खुदायी भी बेवफाई बन जाएगी

मैंने तो तेरे लिए ही सोचा था
नहीं जानती थी .....सोच भी गुनाह हो जाएगी

Friday, 11 October 2013


                              
तुम जो मन में हो
तो सोच की उडान का
कोई दायरा नहीं
में तुम्हे साथ लिए
ज़मी आसमा
तारे नज़ारे
खुशबु रूह
सरे जहां में
विचरण कर
वापस आ जाती हूँ
समेटूं कैसे
इन उड़ानों को
अक्सर ये सोच …..
मैंने इन्हें कैद
कर लिया ....पन्नो में
चाहती थी ये
उडान तुमसे है तो ....
तुम भी इसमें शामिल रहो
तब इन्हें अल्फाजों में उतार ..
कागज़ पर सजाया
इंतज़ार किया ...
तुम्हारे आने का
पर वक़्त नहीं था शायद .....
तुम्हारे पास
संजोती रही हर दिन ...
उड़ानों को कैद कर
अल्फाजों में
पर आज न जाने कैसे ....
इन अल्फाजों को
पर लग गए
और ये उड़ चले है
तुम से मिलने ...
पंछी बन ...
पन्नो की कैद से निकल
तुम से मिलने ....
अपनी आसमां से मिलने…

Thursday, 10 October 2013

                                       
जीवन के करीब
या दूर
पता नहीं .....
असमंजस में सोच
और मैं ....
शिकायतें ....आलोचनाओ
की विराट विकराल
लहरों के बीच .....
मेरे जीवन की कश्ती
हिलोरे लेती हुई.....
इस मुश्किल
सफ़र को ....
समझोते की ड़ोर पर
चुप्पी की गाँठ को थामे
मैं.....
ज़िन्दगी के इस
अथाह सागर में
डर है ....
जिस दिन इस
चुप्पी की गाँठ
खुल गयी और
कहीं ये डोर ही
टूट गयी तो
इस गहरे सागर से
विदा लेनी पड़ेगी.....

बीती रातों के
चंद कतरन
बिखरे है
आज फलक पर
लगता है जैसे
पंछी है
दिन दोपहरी में
उड़ते छिपते
ठोर तलाशते
घरो में झाँकते
तान मिलाते
बैर नापते
रास्ता पाते
दिन निकाल देते है
शाम ढले
चले आते है
मिलने एक सार में
कतरन से
आवरण बन
ओढ़ लेते है रात ....

Sunday, 6 October 2013


रतजगे
मेरी तनहाइयों के
बड़े खाली खाली
होते है
न आँसुओं
का ज़ाम होता है
न धडकनों के साज़
खामोश और बिना तान
के यादें मुजरा
किया करती है
रात भर .....
आँखों के दरवाज़ों
पर खड़े होकर
ख्वाब
तरसते रहते है
हाथ फैलाये
माँगते है एक अदना
नींद का
निर्मल सा झोंका
पर न तनहाई का
दिल भरता है
और न ही
उसकी महफ़िल
से कभी यादों की
झनझन कम होती है
सारी रात
रतजगे की ये महफिले
चलती रहती है
घर में सब सोए
रहते है शांति से
और मैं
इस रतजगे में
आँखे गड़ाएं ....
मुजरा देखती हूँ
सारी रात ....हर रात…

Thursday, 3 October 2013


तुम्हारे
साथ चलने
को राज़ी थी मैं
मगर ना जाने
तुम क्यूँ
आगे बढ़ चले

मैं उसे भी
स्वीकार कर
तुम्हारे क़दमों के निशां
देख पीछे पीछे
चलती रही
किस गली, किस मोड़
से तुम ले जा रहे थे
नहीं देखा

जानती थी
तुम
सही रास्ता ही
चलोगे
विश्वास था
तुम पर
कभी बीच राह छोड़
कोई साधन
नहीं तलाश करोगे
जहाँ जहाँ तुम्हारे
कदम पड़ते गये

मैं साथ के लिए
पीछे पीछे
चलती रही
ना जाने कब
तुम्हारे क़दमों
की आहट
के साथ ही उनके
निशां भी 
हलके होते गए

मैं अब कहाँ हूँ .....
किस गली किस मोड़
किस दिशा में
नहीं जानती
हर तरफ ख़ामोशी
गहरा काला
अँधेरा है

और शायद
कभी न खत्म
होने वाली तन्हाई
कहाँ हूँ मैं ....
कैसे, कहाँ
तलाश करू तुम्हे
यहाँ न 
ज़िन्दगी है मेरी
न मेरे रास्ते

दूर तक मेरी दौडती
नज़रे है जो
हांफती हुई
वापस आ जाती है
कहाँ हूँ मैं .....
अपनों से दूर
अपनी दुनिया से दूर ...
तुम से दूर ....
कहाँ हूँ मैं .....

Tuesday, 1 October 2013


बेहतर था
कुछ कमी न होती,
आँखों में
यूँ नमी न होती...
तुम न आते गर
‘’जान ‘’यूँ
अधूरी न होती...
बंद ही रहता
अँधेरा कमरा,
रौशनी की
फिर गुंजाइश न होती...
न देखते सपने
न पंखों की
उडान होती...
फूंका न होता
दिल अपना,
तुम्हारी हाथ सेकने की
जो फरमाइश न होती...
तुम्हारा ख्याल ही जो
झटक दिया होता,
मेरे प्यार की
फिर पैमाइश न होती...
प्यार न होता
ये हाल न होता,
यूँ मेरे खिलाफ़
फिर दुनिया न होती...
बेहतर होता
यूँ कमी न होती,
तुम्हारी मुझे
जुस्तजू न होती...

Monday, 30 September 2013

मैं
जो घुटन में हूँ
पर क्यूँ
घुटन में हूँ
मेरा मन
सदमे में जैसे
शांत सा
साँस टनों बोझ
लिए घिसट घिसट
रुक रुक कर
चलती है
इतने ज़ख्म लगे है
शब्दों को
गुज़रती है तो
छिल जाते है
गला भर आता है
लहू से
उगल दूँ ये ज़ख्म
या फिर
सी लूँ इन्हें
उगले से तो
अन्दर
शांति हो जाएगी
पर बहार ज़लज़ला
आ जायेगा
जो सी दिया तो
जानती हूँ
फिर उफन उफन
आएगा
निगल लूँ फिर
बात आबरू सी रहेगी
दफन .....

Saturday, 28 September 2013

तुम
नहीं कह सकते
कि मुझ से प्रेम है
बातों में उलझा
सकते हो बस
प्रेम में तुम क़सीदे
ही पढ़ो
मेरी आँखे
तुम कभी नहीं पढ़
सकते .....

Wednesday, 25 September 2013

कुछ किस्से
आसमा में
तारों के जैसे
झिलमिलाते रहते है
हाँ ...
कभी कभी जो
वक़्त के
बादलों से छिप
जाया करते है
पर याद की आंधी
उन्हें फिर से
रौशन कर देती है
जहाँ ....
ये किस्से
तुम से चाँद जैसे
और मेरे जैसी चाँदनी
की तरह .....
हम दोनों से मिल
जगमगाते रहते है……
नींद के द्वार
पर खड़ी
आँखे आँसू
बहाती है
उन्हे समझ
का आँचल
थमा कर
इंतज़ार का
कुछ और
वक़्त
मांग लेती हूँ…
मैं ….

Friday, 20 September 2013

दफन 
कर दो
की अब 
साँस
लेना भी गुनाह
लगता है
अपने 
ख्वाबो को
रोज़ मरते
नहीं देख
सकती 
मैं .......
कभी वक़्त
मिले तो
मेरे बारे में
भी सोच लेना ....

जो फूल
तुमने कुचल दिए
उनके चाहने वालो के 
बारे में भी सोच लेना

तुमने कितनी 
मजबूरियों की 
दुहायी दी
जीते जी जिसे 
दफना दिया
उस ‘’जान’’ के 
बारे में भी सोच लेना

उस वक़्त को
तुमने दोषी बना दिया 
मेरे तडपते, 
बिलखते गुज़रे
उस हर पल के 
बारे में भी सोच लेना

तुमने सुनाई 
दुनिया दारी 
की दलीले तमाम
कभी मेरी तरफ 
से भी पैरवी कर 
के भी देख लेना

छन से बिखरना 
किसे कहते है
मेरे बिखरे सपनो
के टुकड़ो को 
गिन के भी देख लेना

तुमने की शुरुआत 
और बीच सफ़र 
में लौट लिए
तुम भी कभी 
अपने घर को आग 
लगा के भी देख लेना

मैं परायी लगी 
इसलिय पल में 
बदल गए ?
कभी आईने में 
खुद से ये सवाल 
कर के भी देख लेना.....

Thursday, 19 September 2013

गहरे मन
के अंधेरों से
मैं 
हाथ बढ़ा
कर उजाले को
टटोलने की
कोशिश करती हूँ
पर ज़ख्मो के
रिसाव से 
फिसलन
इतनी है की
मैं वापस
गहरायी में
फिसल जाती हूँ
ना जाने
कितनी बार
शायद
हर बार .....
इस उलझती
ज़िन्दगी की गुम
हुई राहों को
तलाशने के
प्रयत्न में
गहरी आह भर
फिर से उजाले
की तरफ
निगाह कर ....
मैं हाथ बढ़ाती हूँ 
उसे छूने की
कोशिश करती हूँ
कभी तो
उसका कतरा भर
रह जाये मेरी
उंगलियों के
पोरों पर
देख सकू
उसे करीब से
कभी तो शायद
मेरे हाथों में
वो भर जायेगा
आ कर ....
जिससे मन को
भीगो सकूंगी
निराशा की
आँखों को खोल
आशा के सवेरे
से मिला सकूंगी
और यही सोच
उजाले की राह
में मेरे प्रयास
जारी है ......
काश
मैं अपनी
चलती
घुटती
सांसों कि
उलझनों को
शब्द दे
पाती
तो उन्हें
शिकायत
न होती की
मैं
समझती
नहीं
तड़प उनकी ....

Friday, 13 September 2013

'क्षणिका'......

छुप के रोता
पलट के हँसता
समझे न कोई
बहाने गढ़ता
संभाल के मुझ को
गिरता पड़ता
पगला कितना
मेरा मन !!!

''क्षणिका''

जलती नींदे
रोते सपने
रात भर
तपती
राख पर
करवटे बदलती
मैं ......

Thursday, 12 September 2013

''क्षणिका''.....

तुमने
आकार तलाशा
मैंने
विचार तलाशे
साथ
रहते कैसे
विपरीत
रेखाये जो खीची थीं ...

Sunday, 8 September 2013

ये गुलाब की खुशबू मुझे
हमारी पहली मुलाकात
याद दिलाती है...
सारा घर महका था
उस दिन फूलो से
पर तुम जब करीब आये
जैसे गुलाबों की खुशबू लिए
हवायें चलने लगी.....
हर साँस महकने लगी
तुम साथ लाये थे
जैसे फूलों का महकमा
तुम्हारे जाने के बाद भी
ये महकता एहसास
मुझे लुभाता रहा...
वो बीता दिन और गुज़रती रात
मेरी आँखों से नहीं
मेरी सांसो से हो
गुज़र रही थी
जिसमे तुम थे और
तुम्हारा एहसास...
मेरे साथ ...तुम.....

Tuesday, 3 September 2013

कई घन्टो बैठ
ख़ामोशी के दामन में
आसमां को नापते
तारों को आवाज़ दे
हवाओं की नब्ज़ धाम
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

वक़्त को नजरो में उतार
अश्कों से सपने छान
गीले अरमानो को
अपनी तड़प की आहों
से बार बार सुखा
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

पैरों में पड़े जख्म
से गिन गिन काँच हटाते
खून के दागो को
दुपट्टे से छुडाते
बे सर पैर के बहाने बनाते
सर को ज़मीं से बतियाते
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

हर दिन हर पहर
ज़ुबान पर ताले लगाये
निहारते अनजाने साये
सबकी बातों पर
खुद को समझाते
हर आवाज़ पर आँसू
बहाते ......
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने.....

Wednesday, 28 August 2013

उबासी लेते दिन
आँखों से पानी झरते है
गर्म सी हथेली है कुछ
टूटे बदन सी आह भरते है
रोज़ मेरे लिए जागते
थक गए शायद
थोडा आराम चाहते हैं
कभी मौज़ मस्ती से
महीनों गुज़ारा था
घूरते हुए शक्ल मेरी
फिर कैलेंडर ताकते हैं
सोचा तो था तुम्हें लम्बी
छुट्टियाँ दे दूँ मगर
रातों की अर्ज़ियाँ
कब से पेंडिंग पड़ी थीं
वो मंज़ूर करनी पड़ीं
अब दिन भर सुस्ती
रहती है हवाओं में
दिन जमाहियाँ ही भरता
रहता है सरे आम
मैं उसके मुँह पर
हाथ लगा उसे जगाये रखती हूँ.....

Tuesday, 27 August 2013

पुर्जे पुर्जे उड़ रहे थे
पार उफ़क़ के ……….
तुमने हाथ झटक
कदम पलट
अलविदा जो कहा……..
तिनका तिनका बिखर
रहा था मन
सारे तार टूट गये
धडकनों के …….
कानो के परदे
जल उठे
सन्नाटे की गूंज से…..
अश्कों के समंदर ने
तेज़ उफान के साथ
मेरी आवाज़ का गला
घोट दिया……
डर कर शब्द भाग खड़े हुए
हाथों में टुकड़े थे
हमारी तस्वीर के
जिसको दो हिस्सों में बाँट
तुमने मुझे ज़िन्दगी से
अलग कर दिया
कितने ही और टुकड़े किये थे तुमने
हमारी बाकी तस्वीरो के .......
इतने की मैं
मैं दोनों हाथों में
समेटी थी फिर भी ....
पुर्जे पुर्जे उड़ रहे थे
पार उफ़क़ के .......

Monday, 26 August 2013

लग रहा मन के
चौराहे पर मेला
उलझनों ने
भाव बढ़ा रखे है
कौन क्या ख़रीदे
और कैसे बैचे

झूले
झूलते बीते कल
चाट पकोड़े
खाते शक के बीज
तमाशे
देखने की लाईन में
लगे है वहम मेरे
आगे के किस्से हटे
तो उनको पास मिले
सर्कस के दीवाने है
कई सवाल
जवाब इन की भीड़ से डर
किनारे तलाश रहे है
राते नाचती है
बेधड़क
दिन पैसे लूटा रहा है ....बेशर्म है
शामों का पता नहीं
निकली ही नहीं
शायद घर से ....घरेलू है बहुत
बीते पल झगड़ रहे है
रंग बिरंगे रंगों की दुकान पर
अरे .....न लड़ो क्या करोगे
अब रंगों का
आज मेरा हँसता ही नहीं
जा बैठा क्यूँ फिर
ठिठोली मण्डली में
सब उसे घुर रहे है
चल दिया क्या करता .....
चस्पा कर रखा है
हर गली हर मोड़ पर
तुम्हारा नाम .....
बच कर निकलती यादे
रोने लगती है ……
मिटाती आंसुओ से
तुम्हारा नाम
पर निशां है की
जाते ही नहीं ……
बिना चमक और
रौशनी का ये कैसा मेला
तम्बू गाड़े है
ज़ेहन में कीले कर
और इतना भार लिये
फिरती हूँ .....मैं

Sunday, 25 August 2013

आज 
और कल में
गुज़र रही है 
ज़िन्दगी
आज कल को 
नहीं थामता
कल पीछा नहीं
छोड़ता
रोज़ की लडाई
दोनों में से 
कोई भी नहीं हारता

आज 
भी कल को 
ताकती तारीखे
बीते लम्हों के 
निशां तलाशती है
उन एहसासों के 
मायने
आज हर रात 
तराशती है

कल 
में आज का 
निशां नहीं था
भ्रम था पर 
यकीं नहीं था
कल पल पल 
साथ रहता यही
जो ढुढती है
गायब बस वही

सुन कल 
तुझ से ज़िन्दगी 
बंधी है अब
आज संग 
मिल जा
रहना दिल के
कौने में कहीं
कल को मेरा 
आज संभाल लेगा
और आने वाला
कल भी गुजार देगा
मैं सह लुंगी 
समय की धार को
कल की डोर से 
आज कल भी 
पार लगा देगा…..
सोचते हुए
जब चाहूँ लिखना
कागज कलम
हाथ में लिए
बस रेखाए 
खीच पाती हूँ
कैसे वो उतार पाऊं
जो मन में 
हिलोरे ले रहा है
शब्द नहीं मिलते 
मुझे ......
किस तरह 
बतलाऊ सोच की 
लहरें कितनी 
तेज़ी से मन
की दीवारों से 
टकराती है
दीवारे छिल जाती है
रिसने लगती है
उन पर जमा
वक़्त का चूना
झडने लगता है
कमज़ोर होने लगी है
अब ये दीवारे
डरती हूँ
कहीं ये गिर न जाये
कैसे बचाऊ में अपने
मन की चार दीवारी को
जिससे मैंने 
बाहरी दिखावट से
खुद को बचाए रखा है
अपना लूँ क्या
शब्दों का विस्तार
चाहती है सोच पर
मैं नहीं ....
दीवारों , मरीयादाओ 
से परे नहीं
मैं संकुचित सोच
अपने हाशिये में सही
सबसे पीछे
दुनियादारी से दूर सही
मैं आधुनिकता में
पिछड़ी सही
मैं .....मैं सही …

Friday, 23 August 2013

परेशां हूँ 
मैं तुमसे
क्यूँ चली आती हो 
बिन बुलाये
हर वक़्त ...बिना वक़्त
सर पर सवार 
साथ साथ
कितने सवाल है 
तुम्हारे .....
कहाँ से लाती हो 
सबके बीच में भी
तुम चुप नहीं होती
मुझे घेरे रखती हो
तुम पर किसी का 
जोर नहीं
क्या तुम्हारा 
कोई घर नहीं
जाओ मुझे 
मुझसा रहने दो
बेपरवाह मुझे बेहने दो
मुझे नहीं टोकना
ना मुझे रोकना
मैं अपने आप से 
मिलना चाहती हूँ
तुमसे दूर
बहुत दूर जाना चाहती हूँ
ख़ामोशी नाम है तो
खामोश रहा करो
अपने नाम का कुछ तो 
लिहाज किया करो
क्यूँ अपना साम्राज्य 
फैलाया है
मुझे कमज़ोर समझ तुम 
अपना हुकुम 
ना सुनाओ
मैं तन्हा जरुर हूँ 
पर बेचारी नहीं
तुम मुझे ना सताओ 
जाओ कोई
और दुखी मन 
तलाशों
मैं तुम से परेशा हूँ
जाओ यहाँ ना आओ

Tuesday, 20 August 2013

मुझ में कुछ
टुटा चुभ रहा
दिल खाली हुआ
बस गूंज रहा
हाथ रख
संभालू इसे
चुप करू .....थपथपी लगा
बहला रही .....मान जा
कुछ नहीं हुआ
एक खिलौना था
बस वो टूट गया
दुनिया में कितने
खिलाडी
उनमे से तुझ से भी
कोई खेल गया
दस्तूर
यही है शायद
पुराना दफ़न ....
नया लाया गया
तू चीख चिल्ला
पुकारता रह....
कानों पर पर्दा
लोहे का लगा
दिल है तू
बस धडक
और धड़का कर बस.......
मौन हूँ ढलती शाम सी

घुटती हूँ बंद साँस सी .....


ये पल बहुत कठिन लग रहा

रो दूँ टूटते बांध सी .......

Monday, 19 August 2013

रखे थे
कुछ फूल जब डायरी में
उस संग रखे
तुम्हारे उस पल की
सारी बातें, बेचैनी और
वो दिन भी
वो सब
उन्हीं पन्नों के बीच पड़े है
उन पन्नो को छोड़ मैं
शेष पन्नो पर
लिखती हूँ कभी-कभी
नहीं चाहती
उन पन्नों से याद का
एक कतरा भी
इस हवा में घुल सके
फूल तो सिकुड़ गये
पर बाकी सब
वैसे ही कैद है उसमें
गुज़रा वक़्त जैसे रुक कर
सिमट गया पन्नो में
बिना हाथों की छुअन से गुज़रे
न धूप लगी तन की
न मन से गीला हो सका
कैसे इस परिवर्तन को
बदलने से रोक लूँ मैं
अभी जो सिमटा है वो
कल पुर्ज़ा-पुर्ज़ा झड़ जायेगा
राख़ बचेगी बस.......
अभिनय कर तो लूँ
पर कच्ची हूँ
माँ पकड़ ही लेती है छुपाये गए
झूठे हाव भाव...
चुप रह कर सिर्फ सर हिला कर
उनकी बातों का जवाब देना
छत पर घंटों अकेले बिताना
रात भर जागना
और सुबह लाल आँखों से
माँ से कहना-
कुछ नहीं कल गर्मी बहुत थी
नींद नहीं आयी...
माँ ने भी कुछ न कह
बस पास बिठा कर कहा
चाय पियो आराम मिलेगा
वो तो समझ गयी...
काश मैं भी वो समझूं
जो वो मुझसे रोज़ न कहते हुए भी
अक्सर कह देती है
समझती हूँ माँ...
बस ये दिल नहीं समझता
इसे समझा दो.....माँ !!!!

Saturday, 17 August 2013

दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ
वो तीखी धूप का एक टुकड़ा
मेरे कमरे तक आने को बेचैन
हवा ज्यों तेज़ हो जाती
वो ताक कर मुझे
वापस लौट जाता
इतना रौशन है वो आज कि
उसके ताकने भर से
अँधेरे से बंद कमरे की
आंखें उसकी चमक से
तुरन्त खुल जाती हैं
बहुत नींद में रहता है कमरा
आंखें मिचमिचाता है
कुछ देर तक यूँही देख
फिर आँखें बंद कर लेता है
हम्म ....मुझे लग रहा है
आज धूप का ये टुकड़ा
बारिश के बाद नहाया हुआ
मस्ती में है इसलिए
खेल रहा है शायद
खेलते रहो....तुम दोनों
मैं भी देखूं
कौन मारता है बाज़ी ....

Friday, 9 August 2013

दर्द की भाषा नहीं होती शायद
जिसमे महसूस हो वही दर्द -ए -बयां होता है ....

Tuesday, 6 August 2013

ज़िन्दगी के पलों का भी
अगर अकाउंट होता तो
ब्याज उनके हिस्से में आता
या मेरे हिस्से में.....
कैसे बटवारा करते.....
कई बार सोचा
उम्मीदों का
फिक्स्ड डिपॉजिट करा दूँ...
कुछ सालों तक बनी रहेगी
ना टूटेंगी ना बिखरेंगी
बढ़ कर काम ही आयेंगी....
पर ज्यों-ज्यों उम्मीदें
हमने जमा करी
उनके रेट बढ़ते गये.....
एक अदना चाहत का बांड ख़रीदा.....
वो भी रिश्ते के बाज़ार के
भावों तक आते-आते व्यर्थ हो गया
उसकी कम्पनी ही धोखा दे गयी...
अब सोच लिया
कोई अकाउंट ही नहीं रखना....
एक दिन ज़िन्दगी खर्चनी है बस....
यही खर्च लें बहुत है.....

Tuesday, 30 July 2013

वास्ता बस यूँ कि

यादें आती रहें जाती रहें

इसी बहाने कभी यूँही कह

मुस्कुरा लिया करेंगे

गुज़रती बेहाल सी

रफ़्तार भरी ज़िन्दगी में भी

इसी बहाने कभी यूँही कह

दो घड़ी थम जाया करेंगे

दुखती आँखों पर भी

थोड़ा रहम हो जायेगा

इसी बहाने कभी यूँही कह

आंखे मूंद तुम्हें

देख लिया करेंगे

खोलती नहीं दुपट्टे की

वो गांठ चुभती है जो

ओढ़ने में….इसी बहाने

कभी यूँही कह तुम्हें

महसूस कर लिया करेंगे

मलती हूँ तुम्हारा नाम

हाथ पर अक्सर लिख कर

इसी बहाने तुम्हें यूँही कह

इन हथेलियों में छुपा लिया करेंगे

गला जब रुंध आये

और दम घुटने लगे

बाल्टी भर खुद पर उड़ेल लेंगे

इसी बहाने अब भी

तुम्हारी याद में यूँही कह

हम रो लिया करेंगे

हाँ उम्मीदें ख़त्म नहीं होतीं

कम्बख्त बस यही जिन्दा रखती हैं

चलो खैर इसी बहाने कभी यूँही कह

हम जी भी लिया करेंगे......

Tuesday, 16 July 2013

तुम्हारे इंतज़ार में
दरवाज़े भी अब
दुखने लगे है
फूलों की खुशबु
बिखर बिखर
खो गयी
सावन बरस बरस
रह गया
राते जाग जाग 
उबने लगी है अब
सुबह तरसने
लगी उबासी के लिए
और इन सब से परे
तुम गुम हो
झिलमिल सी
नज़र आने वाली
एक जलती
बुझती चमक में
एक बहक में .....
जो तुम्हे मुझे से दूर
और तुम्हारी झूठी
सनक में
डुबाये रखता है .......
मैं ये सब जानती हुए
आज भी
तुम्हारे इंतज़ार में
आगन सजाती हूँ ......
रात भर
खुद से बातें करती हूँ
की तुमसे ये कहूँगी
वो कहूँगी
यूँ रुठुंगी ..
वो तस्वीर
दिखाउंगी तुम्हे
जो मैंने बंद
आँखों से अक्सर
कागज़ पर
तुम्हारा नाम लेकर
उकेरी है
तुम्हारे पसंदीदा
रंग की वो
साड़ी तुम्हे पहन
कर दिखाउंगी
वो चूड़ियाँ
जिनकी खनक
की तुम बातें
किया करते थे
वो झुमके
जो तुम्हे 
मेरे कानो में
झूलते हुए
बहुत पसंद थे
मेरी आँखों
का काज़ल .....
मेरे लहराते
रेशमी बालों का
हवा के साथ झूमना
पसंद था तुम्हे
और मेरे वो गीत
जो मैं तुम्हे
तुम्हारे रूठने पर
सुनाया करती थी
अब तो वो भी
नए और
सुरीले हो गए है
तुम्हारे इंतज़ार में.....
हाँ पर
अब मैं गुनगुनाती नहीं
इंतज़ार में हूँ
कब तुम आओ
और इनका वैराग दूर हो
सुनो ……….
तुम मुझे नहीं
मेरे साथ इन सब को
अपने पीछे
इंतज़ार करने के लिए
छोड़ गए हो .....
मुझे तो आदत
तब भी थी .....
और अब भी है
पर
ये अब गिरने लगे है ......
इनके पाव 
कपकपाने लगे है .....
कब ये मुर्छित
हो कर
आखरी साँस ले
मैं नहीं कह सकती
पर मैं खड़ी हूँ ....
और यूँही रहूंगी
तुम्हारे इंतज़ार में
आगन सजाये ....
सपने लिए .....
कुछ कहने के लिए .....
सब देने के लिए .....
तुम्हारे इंतज़ार में ......मैं

Saturday, 13 July 2013

ज़िन्दगी 
कम है तुम्हे
प्यार करने के लिए
ये जनम 
कम है तुम्हे
अपना बनाने के लिए
मैं पलके 
यूँही टिकाये 
रखूंगी तुम पर
मेरी आँखों की 
गहरायी कम है
शायद तुम्हे 
छुपाने के लिए
तुम न मिले .....
तो मैं क्यूँ 
बदल जाऊं
एक तुम 
ही काफी हो
बदलने के लिए
मेरी वफायें 
ता-उम्र तुम्हारे 
साथ है
ये वादा ही बहुत है 
मेरा प्यार 
जताने के लिए
मैं हर 
तरह से तुम्हारी
और तुम्हारी 
रहूंगी
यही वजह 
काफी अब
ज़िन्दगी बिताने के लिए 
उम्र 
ये शायद कम पड़े
तुम्हे प्यार 
करने के लिए
मैं हर 
जनम मांग लुंगी
तुम्हे अपना 
बनाने के लिए……….

Saturday, 6 July 2013

मौसम आज सुहाना है
गुनगुनाने की बात करते है
दिल से दर्द दे निकाल
फिर धडकनों की बात करते है
आसुओं की सीलन भूल
बारिशों की बात करते है
चलो आज फिर
जीने की बात करते है ....

सुखे फूलों को भूल कर
गुलशन की बात करते है
गम की शाम ढल चुकी
उजली सुबह की बातें करते है
चलो आज फिर
जीने की बात करते है ....

मुद्दते हुई आईना देखे हुए
आज सवरने की बात करते है
रुलाते पल पीछे छोड़े
हसीन वक़्त की बात करते है
चलो आज फिर
जीने की बात करते है ....

तोहमते लगी लगायी गयी
अब बस अपनी बात करते है
नफरतों से जहां भरा
हम प्रेम की बात करते है
चलो आज फिर
जीने की बात करते है .......

Wednesday, 3 July 2013

महफिले 
बढ़ा ली है 
तुमने अपनी
दिन से रात 
हो ही जाती है
एक वक़्त का रुकना 
तुमने नहीं देखा
शायद मैं इसलिए 
घडी बंद रखती हूँ
उस समय को 
यही रखा है अपनी 
यादों में समेट कर
और रोज़ उनको 
उलट पुलट कर 
देख लेती हूँ
तुम भूल गये 
मेरे समर्पण को 
सुन्दरता देख कर
मन बदल गया 
तन की बनावट 
देख कर
कितने छोटा 
सोच का कद 
कर लिया
दूसरो की जली 
रोटी देख कर
आश्चर्य होता है
इंसान तेरी 
ज़बान पर
कितने वादे 
किये जो धुआ हुए
बनावटी 
उलझन सुलघा कर
अपनी ज़िन्दगी का 
एक दोर 
तुम्हारे साथ जीया
तुमने ना जाना 
बस दिल का 
दिल बहला लिया
फिर भी चलो 
कोई बात नहीं
मैं फिर भी 
तुमसे प्यार करुँगी
उस रोज़ के 
चंद लम्हों के 
कारण
मैं अपनी ज़िन्दगी 
तमाम करुँगी
मैं फिर भी 
तुमसे 
प्यार करुँगी.......

Tuesday, 2 July 2013

एक गीत लिखा है मैंने .....

एक गीत लिखा है मैंने
तेरे मेरे प्यार का
पानी और आग का
तेरे मेरे साथ का
जैसे मिले चंदा चाँदनी से
मिलन उस रात का
रिमझिम पहली फुहार का
महकती बहार का
शहनाई की तान का
मेरे ऐतबार का
तेरे इज़हार का

एक गीत लिखा है मैंने
तेरी मेरी मुलाकात का
ज़ज्बातों के सैलाब का
नजरो की गुफ्तगू का
शर्म और लाज का
तेरे रूठने पर मेरे मनाने का
अपनी दिल्लगी सी बात का
मेरे विश्वास का
तेरे अधिकार का

एक गीत लिखा है मैंने
तेरे हर सवाल का
मेरे नपते जवाब का
रिश्तों की आन का
बेमतलब की शान का
मेरे पल पल की बेगुनाही का
तेरी पलटती जबान का
मेरे टूटते सपनो का
तेरे छूटते अपनों का

एक गीत लिखा है मैंने
तेरी मेरी जुदाई का
यादों की रजाई का
अपने बिखरे जहान का
घुटते सांसों के गुबार का
बिलखते एहसासों का
मुरझाते अरमानो का
मेरे रोती हुई हर रात का
मुझे भूलते तेरे हर दिन का
एक गीत लिखा है मैंने 
तेरे मेरे प्यार का .......

Monday, 1 July 2013

पर अब मैं लोट आई हूँ .....

मैं तुमसे दूर चली गयी थी शायद
पर अब मैं लोट आई हूँ
इतने दिन भूली रही थी शायद
पर अब मैं सब साथ लाई हूँ
बीता हर पल दोहरा ना पाऊँगी शायद
पर अब हर पल बहार लाई हूँ
वजह नहीं मिली थी शायद
पर अब बेवजह ही आई हूँ
मैं तुमसे दूर चली गयी थी शायद
पर अब मैं लौट आई हूँ
बातों और बेबातों का दौर था शायद
पर अब बातों पर य़की कर पाई हूँ
मेरी बेबसी का अँधेरा रहा शायद
पर अब उजला सवेरा जगा लाई हूँ
उलझनों का सफ़र कठिन हुआ शायद
पर अब हर डोर सुलझा पाई हूँ
मैं तुमसे दूर चली गयी थी शायद
पर अब मैं लौट आई हूँ
तुमसे प्यार है ये जानना था तुम्हें शायद
पर अब मैं तुमसे प्यार करने आई हूँ
शर्त प्यार में रखनी पड़े शायद
पर अब रूह तक तुम्हारे लिए लाई हूँ
दुनिया दुःख देगी ताउम्र शायद
पर अब खुद से मैं वादा कर आई हूँ
तुझ संग ज़िन्दगी ज़िन्दगी शायद
पर अब तुझ संग मौत भी लिखा लाई हूँ
मैं तुमसे दूर चली गयी थी शायद
पर अब मैं लौट आई हूँ……

Sunday, 23 June 2013

मैं अपने हाथों में फिर से मेहँदी लगा लूंगी
तुम जो मेरा नाम एक बार ज़बां से लो
मैं बार बार निसार हो जाऊंगी
तुम एक बार मुझे नज़र उठा के देख लो
मेरे लबों की शोखियाँ फिर बहार हो जाएँगी
तुम मेरे पास आ के लटों को जो फूंक दो
मैं अपनी मचलती अंगड़ाईयों को रोक लूँ
तुम ख्याल में मेरे मुझे जो आके थाम लो
मैं बारिशों में अपने अरमां भिगो लूं
तुम दूर से मुझे जो यूँही छेड़ लो
मैं गीत प्यार के मधुर गुनगुना दूँ
तुम मेरी रात को जो चांदनी बना दो
मैं दिल की हसरतों को तुम संग जी लूँ
तुम मुझे वो नायाब फिर वजह दो
मैं मिटा दूँ अपनी हस्ती
तुम मेरे प्यार को जो अपने दिल में जगह दो

Tuesday, 11 June 2013

फिर क्यूँ करू किसी से गिला
गर हमने जो चाहा वो ना मिला

मुद्दतन अपना फटा सिला
फिर भी पल्लू ढकने ना मिला

तुम क्या देते वफाओं का सिला
अपना नसीब जब सगा ना मिला

कोई मांग खुदा से रहम दिला
मैंने तलाशा मगर दर ना मिला

डूब गया मेरे सब्र का किला
वक़्त से भी कोई मरहम ना मिला

जलते सुलगते लम्हे देते हिला
ज़हर ज़िन्दगी क्यूँ तू ना मिला

करती हूँ खुद से ही गिला
क्यूँ चाहा तुझे .......क्यूँ तू ना मिला ......
जब तुम आये थे ...उस दिन
मैं भी सजी थी तुम्हारे लिए उस दिन
दिल संभाला था उस दिन
आंखे चुरायी थी आईने से उस दिन
सपने बुनती रही उस दिन
दूर से महकती रही उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
मुस्कुराती फिर घबराती रही उस दिन
लिया दुपट्टा सर से उस दिन
सीखा लाज का लहजा उस दिन
नज़रे झुकाना आया उस दिन
चुप रहना भाया उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
आंखे तरसी थी उस दिन
धड़कने तेज़ रही उस दिन
सांसे अटकी पड़ी उस दिन
अपने नये बने उस दिन
तुम करीब आये उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
मैं तुम से हम बने उस दिन
सिलसिले को नाम दिया उस दिन
कितने मसरूफ रहे हम उस दिन
खुबसूरत बना दिन उस दिन
काश वक़्त थम जाता उस दिन
जब तुम आये थे ...उस दिन ……

Saturday, 8 June 2013

आना कुछ यूँ कि मुझे इस दुनिया से जुदा कर सको
पल भर के लिए नहीं मेरे लिए मेरे बन के रह सको
मैं पलकों को बंद कर लूंगी जो तुम इनमें हमेशा रह सको
मद्दतें हुई तुमको देखे हुए इनायत होगी जो इशारा कर सको
मैं सब छोड़ चली आऊंगी जो तुम मुझे लेने आ सको
हाँ सोचती हूँ तुमसे आज मैं अपने लिए वक़्त मांगूं
अगर तुम अपने बेवक्त से कुछ वक़्त निकाल सको
कुछ लम्हे मेरे नाम कर दो एक मुद्दतन रात के लिए
मेहरबानी बड़ी ........ जो तुम उधार ही कर सको
लग़्ज़िशें कदम मांगते रहे सहारा दम भरने का
मैं इंतज़ार कर लूंगी जो तुम वादा कर सको
हिज्र की रात में आसमा भी तन्हा रहे
मैं उस रात चांदनी मांग लूंगी जब तुम आ सको
बेरुखी भरा हर मौसम सुहाना मेरा
मैं बिन मौसम सावन बन जाऊंगी जो तुम आ सको
वो वक़्त का ताला तोड़ दूंगी खिड़की का
गर कभी जो मेरी गलियों से जा सको
हर मकसद मैं बन जाऊंगी हर शर्त जीत लेना
और ये भी बता देना ......
क्या कर लूँ मैं तुम्हारे लिए जो तुम न जा सको.....

Friday, 7 June 2013

मेरी आँखों मैं न जाने कितनी रातें गुजारी तुमने
और तब भी कहते रहे देखो मेरा इंतज़ार न करना
मुझे आने में देर होगी तुम सो जाना तुम आँखों में थे
मैं कैसे सोती .......इंतजार तो करना ही था .....कर रही हूँ .....

Sunday, 2 June 2013

साथ रहे तू या ना रहे
ज़ात से वफाई नहीं जाती
तुझे न पाया कभी
मुकद्दर कभी धोका लगा
अफ़सोस मगर मिलने की
तुझे से आस नहीं जाती....

मेरा हर्फों में इतना असर
क्यूँ नहीं ऐ खुदा
क्यूँ तुझ तक मेरी
सदायें नहीं जाती,
बड़ी तोहमते लगी हैं
दामन पे मेरे
तेरे ज़िक्र से अब वो
धोयी नहीं जाती....

कुछ सवाल जो अब भी
ज़ेहन की हलचल है उनकी
तलब अब मेरे जवाबों से नहीं जाती
काश ये होता कि
तू मुझ सा रहता और
मैं भी तुझ सी बन जाती...

इश्क कर लिया था हमने
अब ये बदहाली नहीं जाती,
दर्द जब पिघल कर नसों में
हर आह पर तेरी याद है आ जाती........

Friday, 17 May 2013

अब जो तुम ना लोटोगे तो
आओ फिर बटवारा कर लो
तुम अपने दिल से जो चाहो
वो सभी सोगातें रख लो....

हाँ मैं दोषी नहीं फिर भी चलो
मेरी गवाही तुम ले लो
गिनाते थे जो ऐब मुझ को
वो तुम अब लिख के दे दो.....

भर के रखे तुम्हारे लिए
अरमानो के पैमाने जो
जाते हुए उनका अंतिम
संस्कार खुद से कर दो
अब भी कोई बता दो
शर्त रखते हो तो
इस वक़्त उसे भी
आखिरी सलामी दे दो....

सूखे फूलो को मैं रख लूंगी
तुम उनके जज्बात ले लो
मेरी आँखों के अक्स का
तुम क्या करोगे छोड़ो
तुम धूप का चश्मा रख लो
याद आएँगी मुझे वो बरसातें
मुझे गीली सही तुम
वो सूखी चादर रख लो....

मैं अंधेरों में ही तुम्हे
याद कर लुंगी
तुम तारों की झिलमिल
बारातें रख लो
मेरा कल तो तुम
ले ही चुके हो अपने
कल के लिये
मेरी दुआएं रख लो....

मेरे लिये तुम्हारे धोखे सही
अपने लिये मेरी वफाएं रख लो
सलामत रहे मोहब्बत मेरी
कम जो पड़े तो मेरी
उम्र भी तुम रख लो....

Wednesday, 15 May 2013

नींदे लिया करती है

रात भर अंगड़ाइयां

आंखे जब देख ले तेरी

धूमिल परछाइयां


महक लिए आती है

यादे ओढ़ कर पुरवाइयां

महफ़िल लगने लगी अब

जैसे बोझल तन्हाईयाँ


कसक जगाती उमड़ उमड़

कर तेरी रुसवाइयां

दूरियों के भवर में डुबो लेती

मुझे सोच की गहराइयाँ


दिल का सुकून बनी

ये कैसी दुश्वारियां

नामाकुल हुए जाते हैं

अज़ब बढती नाकामियां


ढंग देख अपने ही बढती

जाती है हैरानियाँ

मोहब्बत क्या हुई

हुई बेइंतिहा परेशानियाँ …

Tuesday, 14 May 2013

आज भी, अभी भी तुम से मैं अलग नहीं हूँ
कल भी, तब भी जानती हूँ मैं कहीं नहीं हूँ 

Sunday, 12 May 2013

उलझन में हूँ मैं
वो दोस्त है तो रूठा क्यूँ है
अगर मेरा है तो मान क्यूँ नही जाता

मेरा सपना है वो
तो करीब क्यूँ नही है
मेरा यकीं है तो मुझे मिल क्यूँ नहीं जाता

मुझसे मुलाकात चाहता है
तो क्यूँ सामने नहीं है
अगर दूरी चाहता है तो मुझे छोड़ क्यूँ नहीं जाता

मेरे अंधेरों मैं तू
आता नजर क्यूँ है
रौशनी में साया क्यूँ नहीं बन जाता

मेरे सब्र का इम्तेहां
बना तू क्यूँ है
रिहायी का फरमान क्यूँ नहीं बन जाता

मेरे सवालों से ही
नजरंदाजगी क्यूँ तुझे है
मुझे लाजावाब क्यूँ नहीं कर जाता

मेरे होने से ही तुझे
तकलीफ क्यूँ है
है अगर तो कह के अलग क्यूँ नहीं हो जाता

मेरे हर सबब में
बेहिसाब तू क्यूँ है
हर वजह से बेवजह क्यूँ नहीं हो जाता 

Wednesday, 8 May 2013

रोज़ करती हूँ तुम्हें याद....

आते जाते दिख जाता
अगर कोई तुम सा कभी
एक पल को ही मगर
तुम आ जाते हो यही
वो पल जो गुज़र गए
झलक की तरह
मैं याद करती हूँ उन्हें
दिन में मरतबा कई....

सुबह शाम का
आना जाना याद है मुझे
सोचती हूँ उसी वक़्त
तुम आते जाते होंगे कहीं
कई बातें तुम्हारी
जो दिल को लुभाया करतीं
अब याद नहीं आया करतीं....

उस समय जो तुमने
दिल से कहीं या
सभी कुछ बनावटी बातें रही…

मैं खुश हो कर तुम्हे
ख्वाबों में बुला लिया करती
पर अक्सर तुम
रुला कर चले जाते रहे....

मैं तब न समझी
अचेतन मन की बातें और
जब अपनी ही चेतना को
नजरंदाज करती रही...

तुमने एक झटके में मुझे
नींद से जगा दिया
मैं समझ गयी
अपने मन की भाषा
ना समझी थी बस तुम्हारी मंशा...

अब सोचती हूँ तो लगता है
तुम अगर न मिलते तो अच्छा होता
मैं ख्वाबों की झिलमिलाती
रौशनी में ही खुश थी
कुछ था नहीं पर वहां मैं थी,
मेरा मन - मेरी खुशियाँ - मेरी इछाये
और कुछ छोटे सपने थे
जिनके साथ मैं जी रही थी....

तुमने आ कर वो सब कुचल दिया
काश न आते तुम पर
फिर भी
रोज़ करती हूँ तुम्हें याद
आते जाते दिख जाता
अगर कोई तुम सा कभी.....

भूल जाऊंगी तुझे......

एक बीते वक़्त सा
कुछ भूल जाना अच्छा होगा
जिसके दामन में दुःख के सिवा
मन को भिगोते
गलतफहमियो के घने बादल,
शिकायतों की बिजलियां
गरजते - गडगडाते काले
शक के भरे बरसने को
बेकाबू सवालों के मेघ
और कुछ डरावनी रातें होंगी;
भूल जाना कुछ कड़वे शब्द
उनकी तपिश आँखों को
और कभी जो दिल को
जलाती रही ओस से भीगी,
ठंडी रातों में भी और
दर्द देती रही मेरे शांत पड़े
कानो को जो अकसर,
दर्द से कराह जाते हैं
तड़प जाते है इतने कि मैं बस
अपने कानो पर हाथ रख लूँ और
जोर से चिल्लाऊं
चुप हो जाओ - चुप हो जाओ;
दिन, दिन से रात और
रात से न जाने कितनी रातें और
कितने दिन-रात समय को कोसा
खुद को कोसा,
भूल जा ये कह कर आंसू पोछे
उसको सोचा खुद को सोचा,
अपनी परछाईयों को टटोला
अपने निशान देखे लेकिन
कुछ न मिला
बस तन्हाई मिली - चुप्पी मिली;
मैं तो थी ही कोरी साफ़ चंचल मन की
न छल जानूं - न चाल
मैं बहते पानी सी निर्मल पावन,
अपने मन के दीये से सबको
एक ही उजाले से रोशन कर
देखा करती थी;
फिर मैं क्यूँ सोचूं तुझको
मुझ संग कोई नहीं है मेल;
तू सफ़र में छूटा बेकार सा पुराना बस्ता
क्यूँ तुझको याद करू मैं
क्यूँ समय बरबाद करू मैं
भूल जाऊं तुझे कुछ बिगड़ी बात समझ के;
नहीं तू मंजिल किसी की
जो हो भी नही सकती राह किसी की
भूल जाऊंगी तुझे - अब मैं भूल जाऊंगी.....

Tuesday, 7 May 2013

बरसात के शहर में भी मैं प्यासी रही

दूर तक भीड़ देखी बहुत पर मैं तन्हां ही रही


सितारे भरे आसमां में सबका अरमा चमचमाता रहा

मैं उस रात भी चाँद तलाशती ही रही


मतलब निकाल लिए दुनिया ने मेरी ख़ामोशी के कई

मैं सबके तीरों के ज़ख़्म बरसो धोती ही रही


नहीं - नहीं सुनकर सबकी ख़ाक हुए सपने मेरे

मैं छाले हाथो में लिए राख छानती ही रही


ग्रहण लगा मेरे सूरज को कितने बरसो से वो सोया हुआ

मैं जलन आँखों में लिए दिल अपना रोशन करती ही रही


बांध भरोसे की डोर से एक झटके सब हवा हुआ

मैं घुटती मिटती आस में पंख फडफडाती ही रही


बेकारियां नकामाबियाँ सब मेरे हिस्से आ गयी

तमाम उल्फ़तों का सबब मेरी इबादत ही रही


सोच कर वक़्त का इरादा साये ने भी गली तलाश ली

मैं समेट कर चुप्पी के धागों में खुद को पिरोती ही रही


आवाज़ें अब जो कभी मेरा पता पूछने लगी

मैं कफ़न ओढ़ कर मरने का ढोंग करती ही रही


ढूढ लेना कभी गर मिल पाई खबर मेरी

मैं अफवाहों के बाज़ार से भी गायब होती ही रही

Thursday, 2 May 2013

सपना देख रही थी जब मैं
और आँखों में सारे नज़ारे थे
तुम थे मैं थी और रंगीन सितारे थे...
तुमने कुछ हलके से कहा
और मैं सुन नहीं पायी थी
पर क्यूँ तुमने फिर न बोला,
मैंने कितना पूछा था
'छोड़ो' कह कर जब
मैंने इस बात को टाला था.....
तभी तुमने मुंह बना कर
चले जाने को बोला था
कितने जिद्दी हो तुम
कह कर मैं जो मुस्कुराई थी,
तुम्हारी नाराज़गी देख कर
मैं फिर संकुचाई थी
मान भी जाओ क्यूँ
पल में रूठ जाते हो
कितनी ना-नुकुर तुमने
उस पल करवाई थी....
तुमने पलट के जो न देखा
मैं कितनी घबरायी थी
उठ कर भागी और
तुमको रोका फिर
कान पकड़ कर सॉरी बोला,
और तुम ने फिर इतना कहा
पागल हो तुम
मैंने क्या कहा
जो तुमने ना सुना
और इतना क्यूँ
परेशां हो जाती हो
मैं ख्वाब हूँ बस तुम्हारा
क्यों हकीकत में मुझको लाती हो?
तुम प्यारी हो मगर
नहीं मेरी तुम साथी हो,
अपने सपनो से जागो
यूँ कह कर वो चला गया
और मैं जागती रह गयी......

Sunday, 28 April 2013

मैं लिखूंगी ..

कुछ हालात और कुछ लोग कभी नही बदलते
मैं यही सोचती हूँ की मैं क्यूँ नहीं ऐसी हो जाती
जैसे बाकी सारी दुनिया है
फिर यही सोचती की शायद यही फर्क है मुझ मैं
और बाकी लोगों में


कभी जब मन में आता बदल दूँ ये तस्वीर
और इसके बदरंग धुंधले रंग सारे
बना लूँ वैसे जैसे मेरा मन है किसी को देख कर विचलित
हो जाता जो और बच्चों जैसा चंचल प्यार से मान जाने वाला
कितना सुन्दर बन पड़ेगा ज़रा सोचो तो
वो तस्वीर का रंगरूप


परिवर्तन सुधार लाता है और मैं उस सुधार की गूंज
बन कर इस तस्वीर में समा जाना चाहती हूँ
पर इतना आसान नहीं लगता मैं एक आवाज़ बन के
रह जाऊँगी बस, जो कुछ समय बाद दूर तक कहीं
नहीं होगी


अपनी बात पहुचाने का जरिया तलाशती रही
और तलाश मेरी लेखनी पर आ कर समाप्त हुई
और सोच लिया इसका विस्तार करना है अपनी
गूंज को महसूस करना है और अब लिखूंगी
मैं लिखूंगी ........

Sunday, 21 April 2013

कल रात एक अक्स देखा

नाचते हुए पानी में एक अपना देखा

अकसर उसके गले लग कर रोती हूँ बंद आँखों में

ये कैसी जागी हूँ उसे दूर जाते और खुद को रोते देखा

तलाश करू कहाँ कैसे उसे उसने न मिलने का कह कर फिर न मुड कर देखा

याद करती हूँ उसका चेहरा बिखरे टुकडे है जैसे

कुछ पलों को जोड़ कर ये प्रयत्न कई बार मैंने कर के देखा

एक तमन्ना लिए जीते थे ज़िन्दगी से

खुली आँखों से उस आरजू को नश्तर बनते देखा

ज़हर भर गया लम्हों में उस वेहम को 

नाचते हुए पानी में मचलते अक्स को खोते देखा

Saturday, 20 April 2013

भ्रम की बात है या केवल एक पल का खुआब

तुम हो भी यही और या फिर नहीं भी

मैं देखती हूँ अकसर तुमको बहुत करीब

झरती सांसों की लहर में कभी आते जाते नींद के झोंकों में भी

बेशक मेरे एहसास में तुम रवां हो अब

पहले मिल लिया करते थे सपनो में कभी भी

वो दिन वो शामे हर तरफ जब तुम रहे तब

मैं सोचती वही हसीन है जो है तुम संग हर पल तभी

भ्रम की ही तो बात थी वो एक पल का खुआब

तुम थे भी वही और या फिर नहीं भी

Wednesday, 10 April 2013

ना नफा देखा ना नुकसान देखा
जब देखा तुझे बंद आँखों से देखा

खोजती रही अँधेरे में चाबियाँ
अपनी सोच का ताला हमेशा बंद देखा

सुलझाती रही उलझती पहेलियाँ
जो साफ़ था नज़रों को भ्रम में वो भी कहाँ देखा

हलके उजालों में ही लिखती रही वादे तेरे
कब परदा ज़ेहन से हटा के देखा

होना था कभी अपना भी यकीन छलनी
ज़माना इतना कहाँ हमने था देखा

Sunday, 7 April 2013

Tumhari yaad, tumhare khuab, tumhara ehssas
Lo ab tum ho gaye mere........
Y khayal he jo aate h jaate h bevajeh
Tum nahi jo gaye bevajeh....na aane k liy....

Saturday, 30 March 2013

थक गयी हूँ मैं क्यूँ साथ लिए जाते हो
पल में हाथ थाम कर फिर क्यूँ झटक जाते हो

अँधेरा कर राह में दूर मंज़िल दिखाते हो
न जाने कैसे हो डर कर फिर खुद ही छिप जाते हो

एक आस बंधा कर झूठी तुम खेल खेलते हो
क्यूँ दिल को ही तुम अपना खिलौना बनाते हो

तेरी फितरत में ही छलावा था .....कितना छुपाते हो
क्यूँ भावनाओ का झूठा कारोबार चलाते हो

तुम अपनी शर्तों का पूरा हिसाब लगाते हो
एक पल के बदले में मेरी ज़िन्दगी मांगते हो

यही सोचती रही की मेरी ख़ुशी चाहते हो
कितनी गलत निकली तुम बस मेरी बर्बादी चाहते हो

Sunday, 24 March 2013

कैसे कह दूँ के मन बुन ले खुआब फिर नए ..
बीते खुअबों की राख अभी तक ठंडी हुई नहीं है …

एक नींद की चाहत में हर रात आंखे मलती हूँ
बीती टूटी नींद की चुभन अब तक दुखती रही है

किसी के आने का इंतज़ार जो तुम पर ख़तम हुआ था
बीते वेहम की वो चोट अभी तक भरी नहीं है

कैसे सजा लूँ मैं अपनी राहों के दर -दरवाज़े 
बीते जो गया वो अब तक लौटा नहीं है 

हाँ ये दीवानापन कहलायेगा मेरा
बिता एक पल जो आँखों से छलका नहीं है

अनजानी तलाश न जाने कब पूरी होगी 
बिता जो किस्सा वो अभी शायद ख़त्म हुआ नहीं है

Thursday, 14 March 2013

ज़िन्दगी-ए नज़्म अगर कह दूँ तो यूँ होगी
न जाने तुझ बिन पूरी ये कैसे होगी

हम तरसते ही रहेंगे बाकी उम्र
न जाने कब तेरे इंतज़ार की हद होगी

उम्मीद लगाये बैठे रहे एक पत्थर से
न जाने वो मूरत कब मोम होगी

मेरी रूह की तलब बढती ही जाती है
न जाने कब इसकी तड़प कम होगी

तेरा एक एहसास भर जो मेरे ज़ेहन से नहीं जाता 
न जाने कब मेरे वेहम की हक़ीकत होगी

Monday, 11 March 2013

नहीं पता मुझको तुम किस-किस बात पर याद आते हो
लेता नाम जब कोई मोहब्बत का ....हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

न जाने कब, किस बात पर आँखों से आंसू आ जाते है
जब नाम दर्द का आता है........ हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

ख़ुशी की कोई बात शायद याद नहीं मुझ को
मुस्कुराने की जब बात आती है ......हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

हर दिन, हर पल गुज़र हे जाता है मगर
जब सुबह, शाम की बात चले ....हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

आवाजों के शोर में एक मेरी आवज़ कहीं खो गयी
धडकनों की अगर आवाज़ आये ....हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

किस्मत, नसीबो की कहानिया बहुत सुनी थी हमने
ज़िन्दगी की कहानी को जी कर.....हाँ मुझे तुम बहुत याद आते हो

Sunday, 10 March 2013

तुम मेरी लकीरों में न सही, मेरे दिल में तो हो
मेरे पास न सही मेरे तसवुर में तो हो

यहाँ कोई बंदिश नहीं तुम रह जाओ न यही
किसी की नहीं बस मेरी सुनो और अपनी कहो

रहना मेरी पनाहों में सो जाना नर्म छाओं में
देख लेना मेरी आँखों से जहाँ हसीन मंज़र हो

कर लेना बात पूरी जो कभी रह गयी थी अधूरी
आ भी जाओ के न जाने दूंगी फिर कुछ भी हो
कुछ यादें जो पीछा नहीं छोड़ती

कितना इन्हें बहा लिया अश्को में

ये बैचेन सायों सी पीछा करती है मेरा

कितनी बार भटकाया इनको .....फिर आ ही जाती है सन्नाटो में

बेचैन हूँ आज बहुत क्या कर रहे हो बातें मेरी

भूले तो नहीं मुझे क्या याद आती कभी मुलाकात हमारी

दुःख रहा है दिल क्यूँ बेसबब आज बहुत

क्या सुन रहे हो तुम धड़कने मेरी ….

Friday, 8 March 2013

khayalon ki mehfil lagi h aap bhi taan ched dijey
Jo zakhm abhi bhare nahi aaiye aap bhi unhe hawaa de dejey.....
Bahane ab muskurane k bhi yaad nahi aate mujhe
Ek teri yaad ne sab kuch bhula diya mujhe

Kabhi jo bin kaheey sun lete the tum
Ab wo tasavur bhi dhundlay lagte h mujhe

Bekhayali ka azab sa khumar hai yahan
Behlane ko ab koi nahi aata mujhe

Dekh lena agr tum durust samjho 
Khabar khud ko nahi meri ab mujhe…….

Thursday, 7 March 2013

Kuch yun aaya wo tufaan sa zindagi m meri
Khuabon ko banjar, raaton ko tanhayi... 
labon ko chubhan, Seene m khanzar or aankhon m gehre andhere de gaya…..

Wednesday, 6 March 2013


Dhadakta h jo seene m wo dil nahi....tum ho mujh m
dekho ab tak yahi ho .....yahi mujh main.....tum....

Monday, 25 February 2013

Apne he haathon barbaad hue hum
sach he kehte h....kismat apne haaton m he hoti h

Tuesday, 12 February 2013

Kuch maksad he nahi nikalta is khamoshi ka zalim
ab bass kar....main bahut dur nikal aayi hun.....

Saturday, 9 February 2013

Kuch khoyi hui si hai meri rahey
inki talash m......main kahin kho gayi hun....
Mitti hun main...roz banti hun main
tere pyar k liye roz bahane chunti hun main

kitni chubhan le kar har din naya aata hai
tere intezaar k liye phir aankhey malti hun main

din ka har pehar uljhano se bhara guzar he jata hai
raat bhar ka ghutta safar gin gin basar karti hun main

mat puch afsos kitna hai apni har sans par mujhe
rokne se bhi rukti nahi…...Uff… kitni bebas hun main

ye din na jaane kab tak gujarengey kayamat se mujhe par
har pal bass jaise mar mar kar jee rahi hun main

ek tujhe paney ke liye khud ko tanha.n chodd kar
teri yaadon mein apne pyar ke rang bhar rahi hun main……

Sunday, 3 February 2013

Kho gayi hun m kahin na jane kis soch m
itni gehri hai ki ab dum ghutne laga hai.........

Saturday, 2 February 2013

Kuch der or behlaa de dil mera
jab dhadakna band ho jaye samjh lena m so gaya....
Ab har taraf ghor andhera lgata h
khud ko jala kar he rasta milega shayad....

Thursday, 31 January 2013

Khone ko kuch baaki nahi tha …………
par ab jo tum aaye ho mera kya le kar aaye ho
phir apni sharte or chubhti yaad samet laye ho

Mere pyar ki jo barsaten the wo sab kahan chodd aaye ho
aaye ho to kuch to mujhe par asar karo
kyun bereham se anjaan ban kholta sa junnun laaye ho

Un baton ka kya karu jo tumhey he mujhe se dur kare
kyun beasar ho tum…. Kya reh gaya piche tum kya bhul aaye ho

Mere the tum mere liye he ho tum yahan
kyun gairon si nazar rakhte ho kyun badrang nakab pehen aaye ho

Saathi mere tum mujhe se alag nahi ho kyun duriyan badate ho
humare bich ka wo pyaar kise de aaye ho…….

Monday, 21 January 2013

Tere liye kuch khuab saja lun m
ek raat ki nind udhaar de ja mujhe....

Sunday, 13 January 2013

Chali aati hai hawayen kuch tarasti si mujh tak
jaise unhey bhi tere hone ka veham ho……

gale lagalun kya unko palat kar
jisse unhey bhi tujh se lipatne ka baram ho….

kuch to sochti hongi y hawayen
kya keh ke talun jo unko sabar ho…..

mushkil bahut hai inko samjhana
palat kar aati hai jaise badti talab ho…..

dhaak se sun leti hai har dhadkan ko meri
inki khair-o- khabar ka thikana yahi ho…..

lafzon ki khamoshi khub samjhti hai
na jane kitni inme kitabi samjh ho……

ashkon se inka nata lagta hai
shayad dekh leti h kahin se bhi aisi kya vafhadaar ho…..

Saturday, 12 January 2013

Kuch paane ka maksad agr khona he h
to meri zaat s apna naam mita de......mujhe mere pyar s mila de
uch paane ka maksad agr khona he h
to meri zaat s apna naam mita de......mujhe mere pyar s mila de

Friday, 11 January 2013

Kuch paane ka maksad agr khona he h
to meri zaat s apna naam mita de......mujhe mere pyar s mila de

Thursday, 10 January 2013

Ek dil he hai bass mera tumhare liye
ek yahi hai.....jisme jaan abhi bakki hai....

Friday, 4 January 2013

Nahi janti hun kuch khone ka matlab
itna pta h bas..... tumhe kho kar .....ab kuch bacha nahi khone ko....