Wednesday, 4 December 2013

तेरे ख़त
जो महका करते थे
तेरी खुशबू से
तेरे एहसासों से
आज मुरझाए से लग रहे हैं.....

तेरे लफ्ज़ जो
उतरा करते थे
सीधे दिल में
जो रोशन करते थे
मेरे दोनों कायनात
आज धुंधला से गए हैं....

चुप्पी लगती है अपने रिश्ते कि
जो अब अल्फ़ाज़ों में भी
उतर आयी है

मैं शब्द पढती हूँ
पर मायने नहीं समझ पाती
क्या हुआ है ऐसा
तुम यादों से भी क्यूँ
दूर जाने लगी हो

रह जाओ न यही
इन लफ़्ज़ों में, इन एहसासों में
अपने खतों में…..मेरे लिए 
तुम रह जाओ न…….

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