मैं झड़ जाऊँ, सूखें पत्ते सी
ख़िल जाऊँ या
फ़िर बिख़र जाऊँ
महकती रहूँ, शोख़ पवन सी
महकाती रहूँ या
मुरझा जाऊँ
कुछ कह दूँ, गुज़रती शाम सी
चुप रहूँ या
रो जाऊँ
मैं सिमटी हूँ, आह सी
तू कह दे या
मैं बिछ जाऊँ
मैं रुकी हूँ, तेरे एक इशारे भर के लिए
तू कह दे या
मैं मुड़ जाऊँ ……..
ख़िल जाऊँ या
फ़िर बिख़र जाऊँ
महकती रहूँ, शोख़ पवन सी
महकाती रहूँ या
मुरझा जाऊँ
कुछ कह दूँ, गुज़रती शाम सी
चुप रहूँ या
रो जाऊँ
मैं सिमटी हूँ, आह सी
तू कह दे या
मैं बिछ जाऊँ
मैं रुकी हूँ, तेरे एक इशारे भर के लिए
तू कह दे या
मैं मुड़ जाऊँ ……..
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