Saturday, 21 December 2013

मेरे सपने मुझे अब सोने नहीं देते
मेरी पलकों को नम होने नहीं देते

यूँ तो देते हैं मुझे होंसला बहुत पर
मुतमईन कभी मुझे होने नहीं देते

फ़िरते रहते हैं ख्यालों की गलियों में
मेरी सोच को तन्हा होने नहीं देते

एक टूक घूरती है दीवारें रात भर
पहरा हो कोई जैसे रोने नहीं देते

इक बोझ है मजबूरियों का मुझ पर
मेरी ख्वाहिशों को पूरा होने नहीं देते

मालूम है कलम में मेरी है शऊर मगर
कांटे बागबाँ को मुअत्तर होने नहीं देते

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