मेरे सपने मुझे अब सोने नहीं देते
मेरी पलकों को नम होने नहीं देते
यूँ तो देते हैं मुझे होंसला बहुत पर
मुतमईन कभी मुझे होने नहीं देते
फ़िरते रहते हैं ख्यालों की गलियों में
मेरी सोच को तन्हा होने नहीं देते
एक टूक घूरती है दीवारें रात भर
पहरा हो कोई जैसे रोने नहीं देते
इक बोझ है मजबूरियों का मुझ पर
मेरी ख्वाहिशों को पूरा होने नहीं देते
मालूम है कलम में मेरी है शऊर मगर
कांटे बागबाँ को मुअत्तर होने नहीं देते
मेरी पलकों को नम होने नहीं देते
यूँ तो देते हैं मुझे होंसला बहुत पर
मुतमईन कभी मुझे होने नहीं देते
फ़िरते रहते हैं ख्यालों की गलियों में
मेरी सोच को तन्हा होने नहीं देते
एक टूक घूरती है दीवारें रात भर
पहरा हो कोई जैसे रोने नहीं देते
इक बोझ है मजबूरियों का मुझ पर
मेरी ख्वाहिशों को पूरा होने नहीं देते
मालूम है कलम में मेरी है शऊर मगर
कांटे बागबाँ को मुअत्तर होने नहीं देते
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