Thursday 30 January 2014

मैं अमावस की काली रातें
तुम गिनते
११६ चाँद की रातें
मेरी बरसातों में तुम
मोहब्बत उगाते हो
मैं चुनती हूँ फिर भी ….काँटे

मासूम हो तुम
समझते नहीं संज़ीदगी की
ज़ुबां ……
कुछ लम्हों की तड़प
सुनायी नहीं देती
सिर्फ महसूस होती है
और तुम सब कुछ 
सुनना चाहते हो

कैसे सुनोगे सिलवटों की
चीख़ें, तकिये की
सिसकियाँ, यादों की रुलाई
मन की तन्हाई
नहीं सुन पाओगे ....... कभी नहीं 

तुम चाँद बनो
चाँदनी के, भिगोती रोशनी के
महकते लम्हों के, तरसते
सपनों के
मैं अमावस की काली रातें
तुम चुनो
११६ चाँद की रातें,
अपने लिए……

Wednesday 29 January 2014

कैसा वक़्त है ये
राहें खोयी सी है
जैसे सब गुथ गया और
कोई पहचान नहीं रही
उभरने के लिए …….

कौन है मेरा अपना
कोई नहीं, अनजान सायें है
दूर........ दूर तलक 
सिर्फ अंधकार और निराशा 
सब है मगर, अपना कोई नहीं
एक दूजे से जुड़े खून से
जात से, जन्मजात से मगर
अनजबी है.…… मन से, दिल से
बातें है सब, स्वार्थी है सब
दिखते अपने से, पराये है सब
घुटन होती है यहाँ
एक झरोख़ा दिखता तो है पर
दूर बहुत है …….
मेरे उसूलों के
कद कम पड़ जाते है ……..

एक परिन्दा क़ैद में है
तड़पता है , फड़फड़ाता है
नहीं पता कब तक सब्र में है

एक जान ख़तरे में है ……..

Monday 27 January 2014

बरसी कल रात
गरज़ कर तन्हाई
भिगो दिए सारे गम
ख़ामोशी के
खेलती रही अजनबी
परछाइयाँ
निचोड़ती रही अपना दामन
यादें रात भर
बह गये वक़्त के बिखरे पन्ने

मैंने भी ज़ेहन से दाग़
धो दिए
बीती रात सब उजला गया
मन से सारा कोहरा छट गया

अब धड़कने
सुनायी दे रही है ……..
कब से न जाने
हर शाम कन्धों पर लिए
रातों के सफ़र पर
चलती रही हूँ मैं
अश्क़ों से डबडबायी आँखे लेकर
हाथों से दीवारें टटोला करती हूँ
अक्सर खुरच जाती है लकीरें
नसीब रिसने लगता है
सब्र का मरहम भी
आउट ऑफ़ डेट हो चला है
छीलते ज़ख्मों पर
हँसी आती है,
दर्द अब मीठा हो गया है

आदतन उकता गयी हूँ
इस सफ़र से पर
लगता है कुछ
मेरा ही इसमें छूटा हुआ है
यूँ दिखता अगर
तो आसां था ढूँढ पाना भी
न जाने किस शेय में जा मिला है
पूछा था शाम का नाम लेकर
गुज़रते लम्हों से
उस दिन से हर पल भी चुप हो गया है
मुमकिन है अब ये बात शाम ही
बताये इसलिए …..

हर रोज़
काँधे पर शाम को बिठाये
सफ़र पर निकलती हूँ मैं……….

Sunday 26 January 2014

एक ऐसे सफ़र पर हूँ मैं
जिसकी मंजिल मुझे नहीं पता....
रोज़ निकल पड़ती हूँ
अपनी उलझनों को
सवालों के बस्ते में डाल और
आँखों में बेचैनी ले कर,
नहीं जानती की ये
जाने वाली सड़के
मुझे कहाँ ले जायेंगी और
वो आने वाली सड़के
कहाँ छोड़ जायेंगी
रोज़ मीलों तक चलती रहती हूँ
थक जाती हूँ, 
पाँव कापने लगते है,
ज़िस्म ज़र् होने लगता है,
लब सूख कर झड़ने लगते है
मैं हाथों से सामने 
रास्ते टटोलती हूँ और
गिर जाती हूँ

यूँही दिन ढल जाता है
शाम बैठ जाती है 
आ कर काँधे पे मेरे
रात भर उसे लिए बैठी रहती हूँ
ज़ख्म धोती रहती हूँ
साँस लेती रहती हूँ
ये कैसा सफ़र है मेरा
जहाँ न कोई मील का पत्थर है न
छाव के लिए एक अधना पेड़
बस चलते जाना है रोज़
बिना जाने की कहाँ जाना है
कहाँ रुकना है
बस चलते जाना है…………

Friday 24 January 2014

तुम्हारा अस्तित्व
नहीं समझ पाती हूँ
तुम कभी ख्याल
कभी नज़्म, कभी गीत बन
मेरे लबों पर सजे रहते हो
कभी महक, कभी गहना बन
मेरे बदन से लिपटे रहते हो
बालों में मोती से, आँखों में
काजल से गुथे रहते हो
हाथों में चूड़ियों से और
पाँव में झांझर से
गुनगुनाया करते हो
सोचती हूँ तुम्हे
सागर सी गहरायी साथ ले कर
तुम्हारी वजह, तुम्हारी जगह
तलाशती हूँ खुद में
फिर भी गुम हो तुम और
तुम्हारा अस्तिव
नहीं समझ पाती हूँ………
कौन हो तुम
मेरी प्यास या
दिल की आस हो तुम
हर सु तू है, तुझ से शुरू
तुझ पे खत्म
दिन हो या रात हो तुम
कौन हो तुम

मैंने जब से समझा रब को
तब से ढूँढा है तुझे को
जीना जाना जबसे
तुझे माँगा है तबसे
कौन हो तुम
मेरी प्यास या
दिल की आस हो तुम

यूँही गुज़री सदियाँ अब तक
पर मैं समझ न पायी
कौन हो तुम
मैं किस्से पूछूँ
कौन हो तुम, मैं कैसे जानु
सवाल लिये फिरती हूँ
अब तक कहीं ठहर न पायी
कौन हो तुम
मेरी प्यास या 
दिल की आस हो तुम
कौन हो तुम...........
सर्द हवायें
मेरे बालों में
ठंडी उँगलियों सी
गालों पर तीखी
छुअन सी
ज़िस्म से लिपटती
अधूरी प्यास सी
कुछ नर्म सी, थोड़ी गर्म सी
तुम्हारी चाह सी, दिल की आह सी
दिलक़श भी, दिलफरेब भी
सर्द हवायें
कुछ तुम्हारे प्यार सी
थोड़ी तुम सी………..
जैसे
झटके से
खींच कर
तुमने मुझे
अपनी बाँहों में ले लिया 

मैं
सिहर गयी
फिर तुम्हारे
प्यार की गर्माहट से
सुकूं पा कर
बिछ गयी मैं…
तुम्हारी पनाह में

कुछ ऐसे ही
आज
सर्द हवाओं में 
उजली धूप ने 
मुझे अपने गले
लगाया और
आज फिर
मुझे तुम याद आये…………
तुम्हारा ख्याल आया
सोचा…..
तुम्हे भी अपना
ख्याल दे दूँ
कुछ कह कर
सताती रहूँ शाम तलक
थोड़ा गुनगुना कर
कानो में घुलती रहूँ
देर तलक
तुम्हें नाम से पुकार कर
सुनाई देती रहूँ
पहरों तलक
तुम्हे छू कर
छेड़ती रहूँ रात तलक
उफ्फ……
बस ख्याल ही तो हूँ
उलझों न

अच्छा.......
मैं सुलझा दूँ
याद करना फिर
ज़िन्दगी तलक………
आते जाते रहते हो
ख्यालों में मेरे
क्या सोच कर रहते हो
साथ तुम मेरे
सवाल करती हूँ तो
रूठ जाते हो
पास बुलाती हूँ तो
भाग जाते हो
छुपा-छुपी नहीं खेलती मैं
क्यूँ बच्चे बन जाते हो
आवारा लगते कभी
कभी राहें भटके से
ये गलियां नहीं तुम्हारी
क्यूँ चक्कर लगाते हो
दीवाने तो नहीं
कहीं तुम्हे इश्क़ तो नहीं…….

सुनो …….
भूल जाओ मैं तुम्हारी
तमन्ना नहीं
उलझन हूँ मैं किसी के
ज़ज्बात की
नहीं कश्ती में समंदर पार की
जाओ कहीं और ढूँढो
मैं नहीं परी 
तुम्हारे ख्वाब की………..

Thursday 23 January 2014

तुम रंग हुए
मैं पानी
अब न कोई जरुरत
न कोई कमी

तुम दिल हुए
मैं धड़कन
अब न कोई गवाह
न कोई क़ाज़ी

तुम लम्हा हुए
मैं पल
अब न कोई पूरा दिन
न कोई रात आधी

तुम रूह हुए
मैं ज़ात
अब न कोई वजह
न कोई सानी ……

Tuesday 21 January 2014

वही रोज़ के
चार क़दम.........

घर, गली,सड़क
और दुनिया
इतनी ही नापी है
ज़मी

दर, दीवार, खिड़कियाँ
और दरवाज़े
इतना ही देखा
आसमां

मैं, तुम, वो
और हम
इतना ही दूर तक
गयी सोच

आज, कल, परसों
और बरसों
इतना ही देखा है
सपना…
कभी होता है यूँ भी
मोहब्बत एक तरफ़ा
रह जाती है

दो साथ मिल चलते है
वक़्त की धूप में
किसी मोड़ पर
एक परछाई रह जाती है

उम्रदराज़ वाक़ये नहीं ये
कुछ हमउम्र भी
भटक जाते है

अज़ीब है दिल के मामले
जो ज्यादा दे वही
अकेले रह जाते है……….

Saturday 18 January 2014

तुम थे तो किसी की जरुरत नहीं थी, न कोई कमी थी
अब जो तुम नहीं हो, जरूरत नहीं किसी की बस तुम्हारी कमी है………

Tuesday 14 January 2014

ज़िन्दगी ने उजालों में भी
सदा अँधेरे ही दिखाये
काले सायें यूँ छाये कि
उम्रगुजारी को सफों पर
उतारने के लिए अब
उजाले की चाह नहीं लगती
अँधेरे और उसकी काली
स्याही दर्द के साथ उठती है और
अपनी छवि को अल्फ़ाज़ों में ढ़ाल
मुझे नज़मे थमा जाती है
मैं हैरान नहीं हूँ
क्यूँकि ये
उजालों के दोष है
अपने से रोशन वो
किसी को नहीं देख पता
उसे ख़ाक कर देता है, जैसे
मेरे हिस्से की धूप उसने
खीज़ कर ख़ाक कर डाली और
मेरे लिए अँधेरा छोड़ दिया
मैंने भी स्वीकार किया
अब ज़िन्दगी के उजले
सफ़ेद रंग से मेरा कोई
वास्ता नहीं
मुझे अब रातों में ही जीना है
मेरा सूरज अब मेरे साथ नहीं
उजाले चीख़ा करते है
आकर मेरे आँगन में
मैं कानों पर हाथ लगा
दौड़ जाती हूँ कमरों में
दरवाज़ें बंद कर, बत्तियाँ भुझा
अँधेरों में छुप जाया करती हूँ
ये दौड़-धूप का सिलसिला
कुछ यूँ चला की
अब उजाले अजनबी और
अँधेरे दोस्त हो गये
मैं दोस्त संग 
अब ज्यादा रहा करती हूँ
अजनबी से डर लगता है……
रात के गहरे अँधेरों में
जब सारी दुनिया सोती है
बंद एक दरवाज़ें के पीछे
मैं चुपके-चुपके रोती हूँ
सपनों की किलकारियाँ
बिलख़ति उनकी भूख
मुझे तड़पाती है
मैं भर-भर आंसू आँखों में
उनको सारी रात बहलाती हूँ
सीने लगा थपथपी कर
बहाने विकट 
समय के सुनाती हूँ
मेरी करुणा 
कोई न समझेगा सोच
हाथ नहीं बढ़ाती हूँ
लगता है मेरे 
सपनों का जीवन
बेरंग हो कर रह जायेगा
इसलिए डरते हुए
रातों में जब 
सारी दुनिया सोती है
मैं सीने से लगा
अपने सपनों को पाला करती हूँ……….
ज़िन्दगी की धूप ने
जब भी तड़पाया
तुम्हारी यादों कि छाव में
तब दिल मुस्काया
थका दिया अकेलेपन
के सफ़र ने जब कभी
तुम्हारे ख्वाबों के स्पर्श ने तब
पंखा है झलाया
दूरियों के दौर लम्बे है
बहुत लम्बे, मगर
तुम्हारी चाहतों ने हर
पल मुझे है रिझाया
झंझटों ने जब दिन के
क़रार छीन लिए
तुम्हारी प्यार की छाव ने
मुझे गहरी नींद सुलाया
अलग़ नहीं तक़दीर हमारी
ज़िन्दगी ने कितना है
जतलाया
न माने ज़माना परवाह नहीं
तुम मेरे हो, दिल ने अब
मुझे भी यही बतलाया……