Friday 24 January 2014

तुम्हारा अस्तित्व
नहीं समझ पाती हूँ
तुम कभी ख्याल
कभी नज़्म, कभी गीत बन
मेरे लबों पर सजे रहते हो
कभी महक, कभी गहना बन
मेरे बदन से लिपटे रहते हो
बालों में मोती से, आँखों में
काजल से गुथे रहते हो
हाथों में चूड़ियों से और
पाँव में झांझर से
गुनगुनाया करते हो
सोचती हूँ तुम्हे
सागर सी गहरायी साथ ले कर
तुम्हारी वजह, तुम्हारी जगह
तलाशती हूँ खुद में
फिर भी गुम हो तुम और
तुम्हारा अस्तिव
नहीं समझ पाती हूँ………

No comments:

Post a Comment