Sunday 23 June 2013

मैं अपने हाथों में फिर से मेहँदी लगा लूंगी
तुम जो मेरा नाम एक बार ज़बां से लो
मैं बार बार निसार हो जाऊंगी
तुम एक बार मुझे नज़र उठा के देख लो
मेरे लबों की शोखियाँ फिर बहार हो जाएँगी
तुम मेरे पास आ के लटों को जो फूंक दो
मैं अपनी मचलती अंगड़ाईयों को रोक लूँ
तुम ख्याल में मेरे मुझे जो आके थाम लो
मैं बारिशों में अपने अरमां भिगो लूं
तुम दूर से मुझे जो यूँही छेड़ लो
मैं गीत प्यार के मधुर गुनगुना दूँ
तुम मेरी रात को जो चांदनी बना दो
मैं दिल की हसरतों को तुम संग जी लूँ
तुम मुझे वो नायाब फिर वजह दो
मैं मिटा दूँ अपनी हस्ती
तुम मेरे प्यार को जो अपने दिल में जगह दो

Tuesday 11 June 2013

फिर क्यूँ करू किसी से गिला
गर हमने जो चाहा वो ना मिला

मुद्दतन अपना फटा सिला
फिर भी पल्लू ढकने ना मिला

तुम क्या देते वफाओं का सिला
अपना नसीब जब सगा ना मिला

कोई मांग खुदा से रहम दिला
मैंने तलाशा मगर दर ना मिला

डूब गया मेरे सब्र का किला
वक़्त से भी कोई मरहम ना मिला

जलते सुलगते लम्हे देते हिला
ज़हर ज़िन्दगी क्यूँ तू ना मिला

करती हूँ खुद से ही गिला
क्यूँ चाहा तुझे .......क्यूँ तू ना मिला ......
जब तुम आये थे ...उस दिन
मैं भी सजी थी तुम्हारे लिए उस दिन
दिल संभाला था उस दिन
आंखे चुरायी थी आईने से उस दिन
सपने बुनती रही उस दिन
दूर से महकती रही उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
मुस्कुराती फिर घबराती रही उस दिन
लिया दुपट्टा सर से उस दिन
सीखा लाज का लहजा उस दिन
नज़रे झुकाना आया उस दिन
चुप रहना भाया उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
आंखे तरसी थी उस दिन
धड़कने तेज़ रही उस दिन
सांसे अटकी पड़ी उस दिन
अपने नये बने उस दिन
तुम करीब आये उस दिन

जब तुम आये थे ...उस दिन
मैं तुम से हम बने उस दिन
सिलसिले को नाम दिया उस दिन
कितने मसरूफ रहे हम उस दिन
खुबसूरत बना दिन उस दिन
काश वक़्त थम जाता उस दिन
जब तुम आये थे ...उस दिन ……

Saturday 8 June 2013

आना कुछ यूँ कि मुझे इस दुनिया से जुदा कर सको
पल भर के लिए नहीं मेरे लिए मेरे बन के रह सको
मैं पलकों को बंद कर लूंगी जो तुम इनमें हमेशा रह सको
मद्दतें हुई तुमको देखे हुए इनायत होगी जो इशारा कर सको
मैं सब छोड़ चली आऊंगी जो तुम मुझे लेने आ सको
हाँ सोचती हूँ तुमसे आज मैं अपने लिए वक़्त मांगूं
अगर तुम अपने बेवक्त से कुछ वक़्त निकाल सको
कुछ लम्हे मेरे नाम कर दो एक मुद्दतन रात के लिए
मेहरबानी बड़ी ........ जो तुम उधार ही कर सको
लग़्ज़िशें कदम मांगते रहे सहारा दम भरने का
मैं इंतज़ार कर लूंगी जो तुम वादा कर सको
हिज्र की रात में आसमा भी तन्हा रहे
मैं उस रात चांदनी मांग लूंगी जब तुम आ सको
बेरुखी भरा हर मौसम सुहाना मेरा
मैं बिन मौसम सावन बन जाऊंगी जो तुम आ सको
वो वक़्त का ताला तोड़ दूंगी खिड़की का
गर कभी जो मेरी गलियों से जा सको
हर मकसद मैं बन जाऊंगी हर शर्त जीत लेना
और ये भी बता देना ......
क्या कर लूँ मैं तुम्हारे लिए जो तुम न जा सको.....

Friday 7 June 2013

मेरी आँखों मैं न जाने कितनी रातें गुजारी तुमने
और तब भी कहते रहे देखो मेरा इंतज़ार न करना
मुझे आने में देर होगी तुम सो जाना तुम आँखों में थे
मैं कैसे सोती .......इंतजार तो करना ही था .....कर रही हूँ .....

Sunday 2 June 2013

साथ रहे तू या ना रहे
ज़ात से वफाई नहीं जाती
तुझे न पाया कभी
मुकद्दर कभी धोका लगा
अफ़सोस मगर मिलने की
तुझे से आस नहीं जाती....

मेरा हर्फों में इतना असर
क्यूँ नहीं ऐ खुदा
क्यूँ तुझ तक मेरी
सदायें नहीं जाती,
बड़ी तोहमते लगी हैं
दामन पे मेरे
तेरे ज़िक्र से अब वो
धोयी नहीं जाती....

कुछ सवाल जो अब भी
ज़ेहन की हलचल है उनकी
तलब अब मेरे जवाबों से नहीं जाती
काश ये होता कि
तू मुझ सा रहता और
मैं भी तुझ सी बन जाती...

इश्क कर लिया था हमने
अब ये बदहाली नहीं जाती,
दर्द जब पिघल कर नसों में
हर आह पर तेरी याद है आ जाती........