Sunday 2 June 2013

साथ रहे तू या ना रहे
ज़ात से वफाई नहीं जाती
तुझे न पाया कभी
मुकद्दर कभी धोका लगा
अफ़सोस मगर मिलने की
तुझे से आस नहीं जाती....

मेरा हर्फों में इतना असर
क्यूँ नहीं ऐ खुदा
क्यूँ तुझ तक मेरी
सदायें नहीं जाती,
बड़ी तोहमते लगी हैं
दामन पे मेरे
तेरे ज़िक्र से अब वो
धोयी नहीं जाती....

कुछ सवाल जो अब भी
ज़ेहन की हलचल है उनकी
तलब अब मेरे जवाबों से नहीं जाती
काश ये होता कि
तू मुझ सा रहता और
मैं भी तुझ सी बन जाती...

इश्क कर लिया था हमने
अब ये बदहाली नहीं जाती,
दर्द जब पिघल कर नसों में
हर आह पर तेरी याद है आ जाती........

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