फिर क्यूँ करू किसी से गिला
गर हमने जो चाहा वो ना मिला
मुद्दतन अपना फटा सिला
फिर भी पल्लू ढकने ना मिला
तुम क्या देते वफाओं का सिला
अपना नसीब जब सगा ना मिला
कोई मांग खुदा से रहम दिला
मैंने तलाशा मगर दर ना मिला
डूब गया मेरे सब्र का किला
वक़्त से भी कोई मरहम ना मिला
जलते सुलगते लम्हे देते हिला
ज़हर ज़िन्दगी क्यूँ तू ना मिला
करती हूँ खुद से ही गिला
क्यूँ चाहा तुझे .......क्यूँ तू ना मिला ......
गर हमने जो चाहा वो ना मिला
मुद्दतन अपना फटा सिला
फिर भी पल्लू ढकने ना मिला
तुम क्या देते वफाओं का सिला
अपना नसीब जब सगा ना मिला
कोई मांग खुदा से रहम दिला
मैंने तलाशा मगर दर ना मिला
डूब गया मेरे सब्र का किला
वक़्त से भी कोई मरहम ना मिला
जलते सुलगते लम्हे देते हिला
ज़हर ज़िन्दगी क्यूँ तू ना मिला
करती हूँ खुद से ही गिला
क्यूँ चाहा तुझे .......क्यूँ तू ना मिला ......
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