Thursday 21 November 2013



उदास सहमी सी शाम
पीला शांत सा आसमां
दूर तक कोई नहीं
कोई आवाज़ भी नहीं
पँछी भी शांत से गुज़रते हुए
न जाने का बताया
न फिर आने की बात की
जैसे कुछ मिला नहीं
दिन भर की घुमकड़ी से
ख़ाली हाथ
लौटना पड़ रहा हो घर
इसलिए मुँह लटकाये
उड़े जाते है
ये शाम की नमी है या
तरसते अरमानो की रात
के आने का आगाज़

सम्भल जा ए दिल
फिर रुलाएगी
ख़ामोशी कि ज़ुबाँ
फिर रात मातम में
गुज़रे की शायद…....

Thursday 14 November 2013

 

वो मिला भी नहीं
मन से मिटा भी नहीं
कैसा हमसफ़र है मेरा
साथ रहा भी नहीं
तन्हा छोड़ा भी नहीं.......

Monday 11 November 2013

आज फिर लड़खड़ा रही हूँ
भ्रमित मन के कारन
वापस लौट आयी हूँ
वहीं जहाँ से चली थी
सम्भावनाओ कि ओर
फिर देख रही हूँ
अनुभवियों के दृष्टिपटल को घूर
कभी उनके नज़र के आईने को
समझती हूँ ……

और कभी
अपनी सोच की पहुँच को
बहुत कमज़ोर और झरझरी
डोर हो गयी है समझ की
ना जाने कैसे पकते पकते
बीज़ बन गयी मैं
मंज़िलों को देखती थी
न जाने कैसे गालियों में
खो गयी मैं
असमंजस निराशा और
हताश उम्मीदों ने
मुझे जकड़ लिया ….या
बाहरी रौशनी और
सपनो कि उड़ानों ने
मुझे अँधा कर
रेगिस्तान में फेंक दिया
मैं आँखे मलते हुए सबकी
ओर अचरच से देखती हूँ
सबको जानती हूँ पर
क्या जानती हूँ
नहीं पता……

कौन सा नया आयाम है ये
मेरी ज़िन्दगी का
मैं पुराने मैले कपड़े
धूप दिखा पहनती हूँ
ये मैं कहाँ हूँ......... कब तक हूँ
मैं कौन हूँ ……..