Thursday, 21 November 2013



उदास सहमी सी शाम
पीला शांत सा आसमां
दूर तक कोई नहीं
कोई आवाज़ भी नहीं
पँछी भी शांत से गुज़रते हुए
न जाने का बताया
न फिर आने की बात की
जैसे कुछ मिला नहीं
दिन भर की घुमकड़ी से
ख़ाली हाथ
लौटना पड़ रहा हो घर
इसलिए मुँह लटकाये
उड़े जाते है
ये शाम की नमी है या
तरसते अरमानो की रात
के आने का आगाज़

सम्भल जा ए दिल
फिर रुलाएगी
ख़ामोशी कि ज़ुबाँ
फिर रात मातम में
गुज़रे की शायद…....

2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरेया -

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