उदास सहमी सी शाम
पीला शांत सा आसमां
दूर तक कोई नहीं
कोई आवाज़ भी नहीं
पँछी भी शांत से गुज़रते हुए
न जाने का बताया
न फिर आने की बात की
जैसे कुछ मिला नहीं
दिन भर की घुमकड़ी से
ख़ाली हाथ
लौटना पड़ रहा हो घर
इसलिए मुँह लटकाये
उड़े जाते है
ये शाम की नमी है या
तरसते अरमानो की रात
के आने का आगाज़
सम्भल जा ए दिल
फिर रुलाएगी
ख़ामोशी कि ज़ुबाँ
फिर रात मातम में
गुज़रे की शायद…....
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरेया -
आभार रविकर सर...........
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