बरसी कल रात
गरज़ कर तन्हाई
भिगो दिए सारे गम
ख़ामोशी के
खेलती रही अजनबी
परछाइयाँ
निचोड़ती रही अपना दामन
यादें रात भर
बह गये वक़्त के बिखरे पन्ने
गरज़ कर तन्हाई
भिगो दिए सारे गम
ख़ामोशी के
खेलती रही अजनबी
परछाइयाँ
निचोड़ती रही अपना दामन
यादें रात भर
बह गये वक़्त के बिखरे पन्ने
मैंने भी ज़ेहन से दाग़
धो दिए
बीती रात सब उजला गया
मन से सारा कोहरा छट गया
अब धड़कने
सुनायी दे रही है ……..
धो दिए
बीती रात सब उजला गया
मन से सारा कोहरा छट गया
अब धड़कने
सुनायी दे रही है ……..
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