उजाले चीख़ा करते है
आकर मेरे आँगन में
मैं कानों पर हाथ लगा
दौड़ जाती हूँ कमरों में
दरवाज़ें बंद कर, बत्तियाँ भुझा
अँधेरों में छुप जाया करती हूँ
ये दौड़-धूप का सिलसिला
कुछ यूँ चला की
अब उजाले अजनबी और
अँधेरे दोस्त हो गये
मैं दोस्त संग
आकर मेरे आँगन में
मैं कानों पर हाथ लगा
दौड़ जाती हूँ कमरों में
दरवाज़ें बंद कर, बत्तियाँ भुझा
अँधेरों में छुप जाया करती हूँ
ये दौड़-धूप का सिलसिला
कुछ यूँ चला की
अब उजाले अजनबी और
अँधेरे दोस्त हो गये
मैं दोस्त संग
अब ज्यादा रहा करती हूँ
अजनबी से डर लगता है……
अजनबी से डर लगता है……
बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteशुक्रिया मानव .....
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