Tuesday, 14 January 2014

उजाले चीख़ा करते है
आकर मेरे आँगन में
मैं कानों पर हाथ लगा
दौड़ जाती हूँ कमरों में
दरवाज़ें बंद कर, बत्तियाँ भुझा
अँधेरों में छुप जाया करती हूँ
ये दौड़-धूप का सिलसिला
कुछ यूँ चला की
अब उजाले अजनबी और
अँधेरे दोस्त हो गये
मैं दोस्त संग 
अब ज्यादा रहा करती हूँ
अजनबी से डर लगता है……

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