Friday 24 January 2014

आते जाते रहते हो
ख्यालों में मेरे
क्या सोच कर रहते हो
साथ तुम मेरे
सवाल करती हूँ तो
रूठ जाते हो
पास बुलाती हूँ तो
भाग जाते हो
छुपा-छुपी नहीं खेलती मैं
क्यूँ बच्चे बन जाते हो
आवारा लगते कभी
कभी राहें भटके से
ये गलियां नहीं तुम्हारी
क्यूँ चक्कर लगाते हो
दीवाने तो नहीं
कहीं तुम्हे इश्क़ तो नहीं…….

सुनो …….
भूल जाओ मैं तुम्हारी
तमन्ना नहीं
उलझन हूँ मैं किसी के
ज़ज्बात की
नहीं कश्ती में समंदर पार की
जाओ कहीं और ढूँढो
मैं नहीं परी 
तुम्हारे ख्वाब की………..

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