Tuesday, 14 January 2014

रात के गहरे अँधेरों में
जब सारी दुनिया सोती है
बंद एक दरवाज़ें के पीछे
मैं चुपके-चुपके रोती हूँ
सपनों की किलकारियाँ
बिलख़ति उनकी भूख
मुझे तड़पाती है
मैं भर-भर आंसू आँखों में
उनको सारी रात बहलाती हूँ
सीने लगा थपथपी कर
बहाने विकट 
समय के सुनाती हूँ
मेरी करुणा 
कोई न समझेगा सोच
हाथ नहीं बढ़ाती हूँ
लगता है मेरे 
सपनों का जीवन
बेरंग हो कर रह जायेगा
इसलिए डरते हुए
रातों में जब 
सारी दुनिया सोती है
मैं सीने से लगा
अपने सपनों को पाला करती हूँ……….

No comments:

Post a Comment