Wednesday, 4 December 2013

जाने कैसे
कोई मेरे दिल में
कल हुआ था दाखिल
जाने कैसे
किसी ने मेरी
नींद चुराई थी

मौसम सर्द था
मनचली भी पुरवाई थी

भीगी पलकों से
बुन रही थी
ख्वाब मोहब्बत का
टूटी जो नींद
हाथ बस
रुसवाई थी

यादों के आँगन में
शायद कुछ फूल
फिर खिले है
जिसकी खुशबु से
चाँदनी भी बोराई थी

तेरी यादों की बारात
हर रात जवां होती है
कल भी शायद
वही से शहनाई 
की आवाज़ आयी थी

मन को फिर भर्म
हुआ होगा
तभी तो मेरे दिल की
कुण्डी तुमने खटखायी थी

जानती हूँ वो तुम ही थे
जो मेरे दिल में फिर
दाखिल हुआ
तुमने ही मेरी 
नींद चुराई थी ……….

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