कुछ याद नहीं
शाम ढलती कब
जाने कब सवेरा दिन में बदले
पल यूँ बीतें
जैसे बह गया पानी
जाने कब तारीख़े बर्फ़ में बदले
मन का कौना
जैसे रह गया ख़ाली
जाने कब मेरे बेगाने में बदले
अज़ीब है यादे
जैसे हवा से बातें
जाने कब ये आँधियों में बदले
चाहती हूँ रुकना
जैसे घर हूँ मैं
जाने कब सपने हक़ीक़त में बदले…….
शाम ढलती कब
जाने कब सवेरा दिन में बदले
पल यूँ बीतें
जैसे बह गया पानी
जाने कब तारीख़े बर्फ़ में बदले
मन का कौना
जैसे रह गया ख़ाली
जाने कब मेरे बेगाने में बदले
अज़ीब है यादे
जैसे हवा से बातें
जाने कब ये आँधियों में बदले
चाहती हूँ रुकना
जैसे घर हूँ मैं
जाने कब सपने हक़ीक़त में बदले…….
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