Tuesday, 3 December 2013

मैं इतनी पूरी तो नहीं
और न इतनी खाली हूँ
ये दुनिया मुझ से बनती है
इस दुनिया से मैं नहीं हूँ

ज़िन्दगी की 
सांझ होने को आयी
और मेरी धूप की आरज़ू 
इस दुनिया के आँगन में
खत्म हुए जाती है

समय कहता है
अब साँझ अपना ले
पर मुझे अपने
लिय बस एक पहर चाहिए
ये साँझ भी मेरी नहीं है

मुझे तो उस पहर से 
गुज़ारना है 
जिस पहर मैं पूरी हो जाऊँ
मैं तुम संग 
सम्पूर्ण हो जाऊँ……….

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