उबासी लेते दिन
आँखों से पानी झरते है
गर्म सी हथेली है कुछ
टूटे बदन सी आह भरते है
रोज़ मेरे लिए जागते
थक गए शायद
थोडा आराम चाहते हैं
कभी मौज़ मस्ती से
महीनों गुज़ारा था
घूरते हुए शक्ल मेरी
फिर कैलेंडर ताकते हैं
सोचा तो था तुम्हें लम्बी
छुट्टियाँ दे दूँ मगर
रातों की अर्ज़ियाँ
कब से पेंडिंग पड़ी थीं
वो मंज़ूर करनी पड़ीं
अब दिन भर सुस्ती
रहती है हवाओं में
दिन जमाहियाँ ही भरता
रहता है सरे आम
मैं उसके मुँह पर
हाथ लगा उसे जगाये रखती हूँ.....
आँखों से पानी झरते है
गर्म सी हथेली है कुछ
टूटे बदन सी आह भरते है
रोज़ मेरे लिए जागते
थक गए शायद
थोडा आराम चाहते हैं
कभी मौज़ मस्ती से
महीनों गुज़ारा था
घूरते हुए शक्ल मेरी
फिर कैलेंडर ताकते हैं
सोचा तो था तुम्हें लम्बी
छुट्टियाँ दे दूँ मगर
रातों की अर्ज़ियाँ
कब से पेंडिंग पड़ी थीं
वो मंज़ूर करनी पड़ीं
अब दिन भर सुस्ती
रहती है हवाओं में
दिन जमाहियाँ ही भरता
रहता है सरे आम
मैं उसके मुँह पर
हाथ लगा उसे जगाये रखती हूँ.....
wowww... unique.. :)
ReplyDeleteशुक्रिया मानव ....
ReplyDelete