Tuesday, 27 August 2013

पुर्जे पुर्जे उड़ रहे थे
पार उफ़क़ के ……….
तुमने हाथ झटक
कदम पलट
अलविदा जो कहा……..
तिनका तिनका बिखर
रहा था मन
सारे तार टूट गये
धडकनों के …….
कानो के परदे
जल उठे
सन्नाटे की गूंज से…..
अश्कों के समंदर ने
तेज़ उफान के साथ
मेरी आवाज़ का गला
घोट दिया……
डर कर शब्द भाग खड़े हुए
हाथों में टुकड़े थे
हमारी तस्वीर के
जिसको दो हिस्सों में बाँट
तुमने मुझे ज़िन्दगी से
अलग कर दिया
कितने ही और टुकड़े किये थे तुमने
हमारी बाकी तस्वीरो के .......
इतने की मैं
मैं दोनों हाथों में
समेटी थी फिर भी ....
पुर्जे पुर्जे उड़ रहे थे
पार उफ़क़ के .......

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