सोचते हुए
जब चाहूँ लिखना
कागज कलम
जब चाहूँ लिखना
कागज कलम
हाथ में लिए
बस रेखाए
बस रेखाए
खीच पाती हूँ
कैसे वो उतार पाऊं
जो मन में
कैसे वो उतार पाऊं
जो मन में
हिलोरे ले रहा है
शब्द नहीं मिलते
शब्द नहीं मिलते
मुझे ......
किस तरह
किस तरह
बतलाऊ सोच की
लहरें कितनी
तेज़ी से मन
की दीवारों से
की दीवारों से
टकराती है
दीवारे छिल जाती है
रिसने लगती है
उन पर जमा
वक़्त का चूना
झडने लगता है
कमज़ोर होने लगी है
अब ये दीवारे
डरती हूँ
कहीं ये गिर न जाये
कैसे बचाऊ में अपने
मन की चार दीवारी को
जिससे मैंने
दीवारे छिल जाती है
रिसने लगती है
उन पर जमा
वक़्त का चूना
झडने लगता है
कमज़ोर होने लगी है
अब ये दीवारे
डरती हूँ
कहीं ये गिर न जाये
कैसे बचाऊ में अपने
मन की चार दीवारी को
जिससे मैंने
बाहरी दिखावट से
खुद को बचाए रखा है
अपना लूँ क्या
शब्दों का विस्तार
चाहती है सोच पर
मैं नहीं ....
दीवारों , मरीयादाओ
खुद को बचाए रखा है
अपना लूँ क्या
शब्दों का विस्तार
चाहती है सोच पर
मैं नहीं ....
दीवारों , मरीयादाओ
से परे नहीं
मैं संकुचित सोच
अपने हाशिये में सही
सबसे पीछे
दुनियादारी से दूर सही
मैं आधुनिकता में
पिछड़ी सही
मैं .....मैं सही …
मैं संकुचित सोच
अपने हाशिये में सही
सबसे पीछे
दुनियादारी से दूर सही
मैं आधुनिकता में
पिछड़ी सही
मैं .....मैं सही …
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