ना नफा देखा ना नुकसान देखा
जब देखा तुझे बंद आँखों से देखा
खोजती रही अँधेरे में चाबियाँ
अपनी सोच का ताला हमेशा बंद देखा
सुलझाती रही उलझती पहेलियाँ
जो साफ़ था नज़रों को भ्रम में वो भी कहाँ देखा
हलके उजालों में ही लिखती रही वादे तेरे
कब परदा ज़ेहन से हटा के देखा
होना था कभी अपना भी यकीन छलनी
ज़माना इतना कहाँ हमने था देखा
जब देखा तुझे बंद आँखों से देखा
खोजती रही अँधेरे में चाबियाँ
अपनी सोच का ताला हमेशा बंद देखा
सुलझाती रही उलझती पहेलियाँ
जो साफ़ था नज़रों को भ्रम में वो भी कहाँ देखा
हलके उजालों में ही लिखती रही वादे तेरे
कब परदा ज़ेहन से हटा के देखा
होना था कभी अपना भी यकीन छलनी
ज़माना इतना कहाँ हमने था देखा
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