Sunday, 28 April 2013

मैं लिखूंगी ..

कुछ हालात और कुछ लोग कभी नही बदलते
मैं यही सोचती हूँ की मैं क्यूँ नहीं ऐसी हो जाती
जैसे बाकी सारी दुनिया है
फिर यही सोचती की शायद यही फर्क है मुझ मैं
और बाकी लोगों में


कभी जब मन में आता बदल दूँ ये तस्वीर
और इसके बदरंग धुंधले रंग सारे
बना लूँ वैसे जैसे मेरा मन है किसी को देख कर विचलित
हो जाता जो और बच्चों जैसा चंचल प्यार से मान जाने वाला
कितना सुन्दर बन पड़ेगा ज़रा सोचो तो
वो तस्वीर का रंगरूप


परिवर्तन सुधार लाता है और मैं उस सुधार की गूंज
बन कर इस तस्वीर में समा जाना चाहती हूँ
पर इतना आसान नहीं लगता मैं एक आवाज़ बन के
रह जाऊँगी बस, जो कुछ समय बाद दूर तक कहीं
नहीं होगी


अपनी बात पहुचाने का जरिया तलाशती रही
और तलाश मेरी लेखनी पर आ कर समाप्त हुई
और सोच लिया इसका विस्तार करना है अपनी
गूंज को महसूस करना है और अब लिखूंगी
मैं लिखूंगी ........

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