Sunday 21 April 2013

कल रात एक अक्स देखा

नाचते हुए पानी में एक अपना देखा

अकसर उसके गले लग कर रोती हूँ बंद आँखों में

ये कैसी जागी हूँ उसे दूर जाते और खुद को रोते देखा

तलाश करू कहाँ कैसे उसे उसने न मिलने का कह कर फिर न मुड कर देखा

याद करती हूँ उसका चेहरा बिखरे टुकडे है जैसे

कुछ पलों को जोड़ कर ये प्रयत्न कई बार मैंने कर के देखा

एक तमन्ना लिए जीते थे ज़िन्दगी से

खुली आँखों से उस आरजू को नश्तर बनते देखा

ज़हर भर गया लम्हों में उस वेहम को 

नाचते हुए पानी में मचलते अक्स को खोते देखा

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