Wednesday, 15 May 2013

नींदे लिया करती है

रात भर अंगड़ाइयां

आंखे जब देख ले तेरी

धूमिल परछाइयां


महक लिए आती है

यादे ओढ़ कर पुरवाइयां

महफ़िल लगने लगी अब

जैसे बोझल तन्हाईयाँ


कसक जगाती उमड़ उमड़

कर तेरी रुसवाइयां

दूरियों के भवर में डुबो लेती

मुझे सोच की गहराइयाँ


दिल का सुकून बनी

ये कैसी दुश्वारियां

नामाकुल हुए जाते हैं

अज़ब बढती नाकामियां


ढंग देख अपने ही बढती

जाती है हैरानियाँ

मोहब्बत क्या हुई

हुई बेइंतिहा परेशानियाँ …

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