Wednesday, 8 May 2013

रोज़ करती हूँ तुम्हें याद....

आते जाते दिख जाता
अगर कोई तुम सा कभी
एक पल को ही मगर
तुम आ जाते हो यही
वो पल जो गुज़र गए
झलक की तरह
मैं याद करती हूँ उन्हें
दिन में मरतबा कई....

सुबह शाम का
आना जाना याद है मुझे
सोचती हूँ उसी वक़्त
तुम आते जाते होंगे कहीं
कई बातें तुम्हारी
जो दिल को लुभाया करतीं
अब याद नहीं आया करतीं....

उस समय जो तुमने
दिल से कहीं या
सभी कुछ बनावटी बातें रही…

मैं खुश हो कर तुम्हे
ख्वाबों में बुला लिया करती
पर अक्सर तुम
रुला कर चले जाते रहे....

मैं तब न समझी
अचेतन मन की बातें और
जब अपनी ही चेतना को
नजरंदाज करती रही...

तुमने एक झटके में मुझे
नींद से जगा दिया
मैं समझ गयी
अपने मन की भाषा
ना समझी थी बस तुम्हारी मंशा...

अब सोचती हूँ तो लगता है
तुम अगर न मिलते तो अच्छा होता
मैं ख्वाबों की झिलमिलाती
रौशनी में ही खुश थी
कुछ था नहीं पर वहां मैं थी,
मेरा मन - मेरी खुशियाँ - मेरी इछाये
और कुछ छोटे सपने थे
जिनके साथ मैं जी रही थी....

तुमने आ कर वो सब कुचल दिया
काश न आते तुम पर
फिर भी
रोज़ करती हूँ तुम्हें याद
आते जाते दिख जाता
अगर कोई तुम सा कभी.....

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