Sunday, 12 May 2013

उलझन में हूँ मैं
वो दोस्त है तो रूठा क्यूँ है
अगर मेरा है तो मान क्यूँ नही जाता

मेरा सपना है वो
तो करीब क्यूँ नही है
मेरा यकीं है तो मुझे मिल क्यूँ नहीं जाता

मुझसे मुलाकात चाहता है
तो क्यूँ सामने नहीं है
अगर दूरी चाहता है तो मुझे छोड़ क्यूँ नहीं जाता

मेरे अंधेरों मैं तू
आता नजर क्यूँ है
रौशनी में साया क्यूँ नहीं बन जाता

मेरे सब्र का इम्तेहां
बना तू क्यूँ है
रिहायी का फरमान क्यूँ नहीं बन जाता

मेरे सवालों से ही
नजरंदाजगी क्यूँ तुझे है
मुझे लाजावाब क्यूँ नहीं कर जाता

मेरे होने से ही तुझे
तकलीफ क्यूँ है
है अगर तो कह के अलग क्यूँ नहीं हो जाता

मेरे हर सबब में
बेहिसाब तू क्यूँ है
हर वजह से बेवजह क्यूँ नहीं हो जाता 

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