Tuesday, 29 October 2013

करवट बदलती रातों में
मेरे शब्द पंछी बन
ख्यालों कि पगडंडियों पर बैठ
अरमानो के फूल चुगते है

कुछ खाते और 
बाकी अधखाया बिखरा देते है
हर अरमां यूँही
कुछ खाया खाया सा
झूठा किया हुआ.....

बिखरे हुए, अधखाये, झूठे किये
अरमां मेरे....
सड़ने लगे है अब
चीटियां लग गयी है
बास आने लगेगी ....कुछ दिनों में

इतनी दुर्गन्ध और सड़न से
अब तो ....
ये पंछी भी
अपना रास्ता बदल लेंगे
और …….
सुना हो जायेगा
मेरे ख्यालों का बागीचा ......

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