मैंने तो यूँही लिखा था बस
नहीं जानती थी .....इबारत सच हो जाएगी
बनावट तो शब्दों की ही थी
नहीं जानती थी ....इनसे तबाही मच जाएगी
मेरे ख़ुलूस में जो ख्याल मुकम्मल न था
नहीं जानती थी .....वही वजह बन जाएगी
ज़र्द हुई नब्ज़ धडकनों की यूँ
नहीं जानती थी ....की जान पर बन आएगी
तकल्लुफ हुआ तुम्हें सोच शर्मिंदा हूँ
नहीं जानती थी ......सुई तलवार हो जाएगी
मेरी मोहब्बत का खुदा गवाह रहा है
नहीं जानती थी ....खुदायी भी बेवफाई बन जाएगी
मैंने तो तेरे लिए ही सोचा था
नहीं जानती थी .....सोच भी गुनाह हो जाएगी
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