रतजगे
मेरी तनहाइयों के
बड़े खाली खाली
होते है
न आँसुओं
का ज़ाम होता है
न धडकनों के साज़
खामोश और बिना तान
के यादें मुजरा
किया करती है
रात भर .....
आँखों के दरवाज़ों
पर खड़े होकर
ख्वाब
तरसते रहते है
हाथ फैलाये
माँगते है एक अदना
नींद का
निर्मल सा झोंका
पर न तनहाई का
दिल भरता है
और न ही
उसकी महफ़िल
से कभी यादों की
झनझन कम होती है
सारी रात
रतजगे की ये महफिले
चलती रहती है
घर में सब सोए
रहते है शांति से
और मैं
इस रतजगे में
आँखे गड़ाएं ....
मुजरा देखती हूँ
सारी रात ....हर रात…
हाथ फैलाये
माँगते है एक अदना
नींद का
निर्मल सा झोंका
पर न तनहाई का
दिल भरता है
और न ही
उसकी महफ़िल
से कभी यादों की
झनझन कम होती है
सारी रात
रतजगे की ये महफिले
चलती रहती है
घर में सब सोए
रहते है शांति से
और मैं
इस रतजगे में
आँखे गड़ाएं ....
मुजरा देखती हूँ
सारी रात ....हर रात…
वाह .. प्रियंका । आज ही तुम्हारे ब्लॉग का लिंक मिला । मेरी fb दोस्त ब्लॉगर मित्र भी बन गई ।
ReplyDeletenice-
ReplyDeletethanks su-man
शुक्रिया दोस्त सुमन .....ब्लॉग पर तो बहुत समय से हूँ ....पर यहाँ लोग कम आते है ....हाँ अब नज़र पड़ रही है सबकी ....शुक्रिया दोस्त ....आती रहो ....
ReplyDeleteशुक्रिया रविकर जी ....
ReplyDeleteरतजगे.....
ReplyDeleteबहुत खूब...
शुक्रिया मानव ....
ReplyDeleteएक नया ख़याल..ताज़ातरीन...!!!
ReplyDeleteआभार सरस जी .....
Deleteसुन्दर रचना।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : विश्व डाक दिवस (World Post Day)
चीन का दुर्लभ डाक टिकट
आभार हर्ष जी ....
Deleteरतजगे की महफिले चलती रहती हैं ...मुजरा देखती हूँ मैं ..अप्रतिम रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया सर ....
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