Sunday 6 October 2013


रतजगे
मेरी तनहाइयों के
बड़े खाली खाली
होते है
न आँसुओं
का ज़ाम होता है
न धडकनों के साज़
खामोश और बिना तान
के यादें मुजरा
किया करती है
रात भर .....
आँखों के दरवाज़ों
पर खड़े होकर
ख्वाब
तरसते रहते है
हाथ फैलाये
माँगते है एक अदना
नींद का
निर्मल सा झोंका
पर न तनहाई का
दिल भरता है
और न ही
उसकी महफ़िल
से कभी यादों की
झनझन कम होती है
सारी रात
रतजगे की ये महफिले
चलती रहती है
घर में सब सोए
रहते है शांति से
और मैं
इस रतजगे में
आँखे गड़ाएं ....
मुजरा देखती हूँ
सारी रात ....हर रात…

12 comments:

  1. वाह .. प्रियंका । आज ही तुम्हारे ब्लॉग का लिंक मिला । मेरी fb दोस्त ब्लॉगर मित्र भी बन गई ।

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  2. शुक्रिया दोस्त सुमन .....ब्लॉग पर तो बहुत समय से हूँ ....पर यहाँ लोग कम आते है ....हाँ अब नज़र पड़ रही है सबकी ....शुक्रिया दोस्त ....आती रहो ....

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  3. शुक्रिया रविकर जी ....

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  4. रतजगे.....
    बहुत खूब...

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  5. शुक्रिया मानव ....

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  6. एक नया ख़याल..ताज़ातरीन...!!!

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  7. रतजगे की महफिले चलती रहती हैं ...मुजरा देखती हूँ मैं ..अप्रतिम रचना

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सर ....

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