जब भी ख्यालों में तुम आये
अक्सर ज़ेहन में
अक्सर ज़ेहन में
अनगिनत अल्फ़ाज़ों की
बारीशे होने लगी
मैंने कई बार
बारीशे होने लगी
मैंने कई बार
उन्हे हथेलियों पर समेट
कागज़ पर उकेरने की कोशिश की
मगर ना जाने क्यूँ
वो अल्फाज़ कागज़ पर
कागज़ पर उकेरने की कोशिश की
मगर ना जाने क्यूँ
वो अल्फाज़ कागज़ पर
उतर नहीं पाते
कभी अल्फ़ाज़ों से नज़्म न हो पाये
मैंने हर्फ़ हर्फ़ समेटा
फिर भी ....
कभी अल्फ़ाज़ों से नज़्म न हो पाये
मैंने हर्फ़ हर्फ़ समेटा
फिर भी ....
नज़्म न बन सकी
सोचती हूँ कहीं ये अल्फाज़
मेरे भीगने के लिए तो नहीं
सिर्फ मुझे भीगो कर
इनकी प्यास बुझ जाये
और कागज़ पर गिर
सोचती हूँ कहीं ये अल्फाज़
मेरे भीगने के लिए तो नहीं
सिर्फ मुझे भीगो कर
इनकी प्यास बुझ जाये
और कागज़ पर गिर
इसलिय ये अपना
वजूद खो देते है
समझ सकती हूँ .....
ये ज़िन्दगी
वजूद खो देते है
समझ सकती हूँ .....
ये ज़िन्दगी
अब अल्फ़ाज़ों से नहीं रही
शायद ...
पर ये अल्फाज़ ही
शायद ...
पर ये अल्फाज़ ही
मेरी ज़िन्दगी बन गए है
और मैं ये ज़िन्दगी ऐसे ही जीना चाहती हूँ .....
और मैं ये ज़िन्दगी ऐसे ही जीना चाहती हूँ .....
भीगती हुई ....
तुम्हारे ख्यालों के अल्फाज़ भरी
तुम्हारे ख्यालों के अल्फाज़ भरी
बारिशों में ....यूँही……
No comments:
Post a Comment