Friday 25 October 2013

बहाने कम नहीं पड़ते
ज़िन्दगी गुजारने के लिए
फिर भी यूँ लगता है ....कुछ कमी है

सवेरे से जो गूंथती हूँ
ये नहीं वो ....वो नहीं ये
का सिलसिला
बस रात तक खीच ही जाता है
एक दिन और बीत गया
तसल्ली मिली पर.....कुछ कमी है

गुमराह है तलाश मेरी
मगर इस मन को सुकूं नहीं
निकल पड़ता है
ख्यालों का बस्ता लगा कर
हर सड़क हर गली
जानता है कोई कूचा न मिलेगा
फिरता लिए बोझा
शायद इत्मीनान है पर.....कुछ कमी है

अक्सर अकेले ताकती आसमां को
कभी देर रात तक दीवारों को
गहरी लम्बी साँस ले कर
अफ़सोस निभा लेती हूँ अपनी
तन्हाईयों संग
साथ मिल जाता है दोनों को
पर ......कुछ कमी है

हाँ....
सब हो ही जाता है
वक़्त गुज़र ही जाता है
उम्र की संख्या बदलती ही रहेंगी
पर फिर भी ....कुछ है जो
उदास कर जाया करेगा
नम आँखों से ....कहना भी होगा तब
कुछ नहीं ....बस यूँही....
पर मैं जानती हूँ.....कुछ कमी है ……

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