Thursday, 10 October 2013

                                       
जीवन के करीब
या दूर
पता नहीं .....
असमंजस में सोच
और मैं ....
शिकायतें ....आलोचनाओ
की विराट विकराल
लहरों के बीच .....
मेरे जीवन की कश्ती
हिलोरे लेती हुई.....
इस मुश्किल
सफ़र को ....
समझोते की ड़ोर पर
चुप्पी की गाँठ को थामे
मैं.....
ज़िन्दगी के इस
अथाह सागर में
डर है ....
जिस दिन इस
चुप्पी की गाँठ
खुल गयी और
कहीं ये डोर ही
टूट गयी तो
इस गहरे सागर से
विदा लेनी पड़ेगी.....

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