Tuesday, 16 July 2013

तुम्हारे इंतज़ार में
दरवाज़े भी अब
दुखने लगे है
फूलों की खुशबु
बिखर बिखर
खो गयी
सावन बरस बरस
रह गया
राते जाग जाग 
उबने लगी है अब
सुबह तरसने
लगी उबासी के लिए
और इन सब से परे
तुम गुम हो
झिलमिल सी
नज़र आने वाली
एक जलती
बुझती चमक में
एक बहक में .....
जो तुम्हे मुझे से दूर
और तुम्हारी झूठी
सनक में
डुबाये रखता है .......
मैं ये सब जानती हुए
आज भी
तुम्हारे इंतज़ार में
आगन सजाती हूँ ......
रात भर
खुद से बातें करती हूँ
की तुमसे ये कहूँगी
वो कहूँगी
यूँ रुठुंगी ..
वो तस्वीर
दिखाउंगी तुम्हे
जो मैंने बंद
आँखों से अक्सर
कागज़ पर
तुम्हारा नाम लेकर
उकेरी है
तुम्हारे पसंदीदा
रंग की वो
साड़ी तुम्हे पहन
कर दिखाउंगी
वो चूड़ियाँ
जिनकी खनक
की तुम बातें
किया करते थे
वो झुमके
जो तुम्हे 
मेरे कानो में
झूलते हुए
बहुत पसंद थे
मेरी आँखों
का काज़ल .....
मेरे लहराते
रेशमी बालों का
हवा के साथ झूमना
पसंद था तुम्हे
और मेरे वो गीत
जो मैं तुम्हे
तुम्हारे रूठने पर
सुनाया करती थी
अब तो वो भी
नए और
सुरीले हो गए है
तुम्हारे इंतज़ार में.....
हाँ पर
अब मैं गुनगुनाती नहीं
इंतज़ार में हूँ
कब तुम आओ
और इनका वैराग दूर हो
सुनो ……….
तुम मुझे नहीं
मेरे साथ इन सब को
अपने पीछे
इंतज़ार करने के लिए
छोड़ गए हो .....
मुझे तो आदत
तब भी थी .....
और अब भी है
पर
ये अब गिरने लगे है ......
इनके पाव 
कपकपाने लगे है .....
कब ये मुर्छित
हो कर
आखरी साँस ले
मैं नहीं कह सकती
पर मैं खड़ी हूँ ....
और यूँही रहूंगी
तुम्हारे इंतज़ार में
आगन सजाये ....
सपने लिए .....
कुछ कहने के लिए .....
सब देने के लिए .....
तुम्हारे इंतज़ार में ......मैं

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