Wednesday, 3 July 2013

महफिले 
बढ़ा ली है 
तुमने अपनी
दिन से रात 
हो ही जाती है
एक वक़्त का रुकना 
तुमने नहीं देखा
शायद मैं इसलिए 
घडी बंद रखती हूँ
उस समय को 
यही रखा है अपनी 
यादों में समेट कर
और रोज़ उनको 
उलट पुलट कर 
देख लेती हूँ
तुम भूल गये 
मेरे समर्पण को 
सुन्दरता देख कर
मन बदल गया 
तन की बनावट 
देख कर
कितने छोटा 
सोच का कद 
कर लिया
दूसरो की जली 
रोटी देख कर
आश्चर्य होता है
इंसान तेरी 
ज़बान पर
कितने वादे 
किये जो धुआ हुए
बनावटी 
उलझन सुलघा कर
अपनी ज़िन्दगी का 
एक दोर 
तुम्हारे साथ जीया
तुमने ना जाना 
बस दिल का 
दिल बहला लिया
फिर भी चलो 
कोई बात नहीं
मैं फिर भी 
तुमसे प्यार करुँगी
उस रोज़ के 
चंद लम्हों के 
कारण
मैं अपनी ज़िन्दगी 
तमाम करुँगी
मैं फिर भी 
तुमसे 
प्यार करुँगी.......

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