लिख कर
काग़ज़ पर
मिटाई गयी इबारत हूँ
अश्क़ बन
अश्क़ बन
बहती रहूँ वो बारिश हूँ
मैं समेट नहीं पाती
मैं समेट नहीं पाती
अपने अक्स की टूटन
छन से पल में
छन से पल में
बिखर गयी वो नेमत हूँ
ऐसा नहीं था की
गुलशन महका नहीं
बहारों का मौसम
दिल से गुज़रा नहीं पर
ऐसा नहीं था की
गुलशन महका नहीं
बहारों का मौसम
दिल से गुज़रा नहीं पर
एक तेज़ झोंके ने ही बाग़
उजाड़ दिया
अरमान के पँछी
उजाड़ दिया
अरमान के पँछी
मार डाले और
सुकूं का गला घोंट दिया
कैसे भूलूँ सब
बस सदमें में हूँ
सुकूं का गला घोंट दिया
कैसे भूलूँ सब
बस सदमें में हूँ
ग़ुमराह,
अजनबी, अनदेखे
सफ़र की राह में हूँ
ख्वाबों के चुभते
सफ़र की राह में हूँ
ख्वाबों के चुभते
ज़ख्म लिए मरहम
खोज़ती दर्द के मैख़ाने में हूँ
मैं ड़ाल से छूटे
चिड़ी के घरौंदें की छाव हूँ
तड़पाती रहूँगी
नसों में हर पल
दुखती वो प्यास हूँ............
मैं ड़ाल से छूटे
चिड़ी के घरौंदें की छाव हूँ
तड़पाती रहूँगी
नसों में हर पल
दुखती वो प्यास हूँ............
कौन पत्थर-दिल है जिसने ऐसे नाज़ुक दिल को दुखाया है । इन अरमानों के पीछे कौन है जो इन्हें पढ़ कर भी लौट नहीं आया है।
ReplyDeleteशुक्रिया जी .....
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