Sunday 2 February 2014

११६ चाँद की रातें
और तुम्हारे
दिल की धड़कन
दोनों समायी है मुझ में
मेरी रूह तलक……..
मैं तस्वुर में रहती हूँ
तुम संग चाँदनी में
और तुम
धड़का करते हो
साज़ जैसे मेरे कानों में
महका करते हो
मेरी साँसों में
सिमटे रहते हो
मेरी बाँहों में
बहुत तन्हा थी
तुम बिन
पूरी पर अधूरी रही
तुम बिन
अब भर लेना तुम मुझे
नज़ारों में
कैद कर लेना दिल की
पनाहों में
मैं उम्र भर 
आसमां के साये
में बैठी रहूँगी
तुम चाँद बन चमकते
रहना मेरी आँखों में
मैं तुम संग धड्कूँगी
एहसासों में
खो जाऊँगी तुम्हारी
चाहतों में
रहना तुम बन
फ़लक से और
मैं तुम्हारे दिल में……

2 comments:

  1. निशब्द करती रचना.....
    बेहद खूबसूरत पंक्तियां.... आमीन...!!!

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