Tuesday 22 April 2014

अब कोई एहसास नहीं.....

एहसास
नहीं होते अब
वो तो कब के 
दफ़न कर दिए थे 
तुम्हारे जाने के बाद
कुछ 
सुगबुगाहटें 
होती थी रातों को
कानों में
जो सोने नहीं देती थी मुझे

हाँ तुम थे
तब भी कभी नहीं सोई थी
तब तुम थे न इसलिए
और अब
जब तुम नहीं हो तो
तुम सोने नहीं देते

तुम्हारी वो
आखरी पल कि बातें
वो साफ़गोई अलगाव की
हमारे रिश्ते की
कईयों बार
दोहराती है तन्हाई

अब तो
सब कंठस्थ हो चला है
सोचती हूँ
कभी अपने
दाता की स्तुति
मुंहजबानी न हो सकी और
तुम्हारी चुभती बातें
मैं दोहराती हूँ

जैसे
कोई मधुर गीत
कभी गुनगुनाया करती थी
पल पल जिसे लबों पर रख
चखती थी
जिसके स्वरों के
तेज़ से मेरे
हिमायती भी साथ हो लेते थे

पर
अब होंठ काले पड़ गए है
शायद जल गए है
तुम्हारी बातों को 
कंठस्थ जो कर लिया है

देखो
कितना ज़ेहर है इनमें जो
मुझे धीरे-धीरे
खत्म करता जा रहा है

फिर
कैसे अब एहसास
जिन्दा रहेंगे
जब सब जलने को है तो
तुमसे मुझे जोड़ने वाले सर्वप्रथम
ये एहसास ही भस्म हो गये
अब कोई एहसास नहीं
कोई भी नहीं……..

6 comments:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत गहराई से लिखा है। ऐसे निर्मोही से क्या मोह।

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  3. अपने बहुत ही अच्छी तरह से और सयुक्त सब्दो को सजोया है
    बहुत खूबसूरत

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