ये उजली सी
रात में तेरा
उतरा सा चेहरा
लगता है
चाँदनी चुभ रही थी
तुझे या काट
रहा है चाँद का पहरा
ख़ामोश रहे तुम
देर तलक और
मैंने भी
तुमसे ग़ुफ़्तगू न की
डरती हूँ
कहीं तुम रूठ कर
चले न जाओ पर
ऐसा भी क्या मिलना तुम्हारा
न तुम बोलो …….न मैं ….
तुम
मन के बड़े गहरे
न जाने किस छोर
तुम गोते लगाते हो
कैसे ……..तुम्हारी ठोर मैं जानू?
ये दमकती
रात भी जो तुम को
बेनूर लगे तो
किस रौशनी से तुम्हें
मैं रोशन करुँ ?
प्रेम की चमक
चाँदनी में निखर जाती है
पर तुम संग ये
बदरंग क्यूँ लगने लगी है?
तुम
मोहब्बत नहीं समझे
न उसकी कशिश को
अपने मैं का
दुःख तुम पर बहुत भारी है
तुम
नहीं समझे
चाँदनी की मोहब्बत
तो क्या जानोंगे मुझे और
मेरे प्यार को
ये उजली सी रात में तेरा
उतरा सा चेहरा
बेवज़ह का मातम
इस एक
मोहब्बत के पल कि
ख़ातिर …..उतार दो इसे
उतार दो इसे………..
रात में तेरा
उतरा सा चेहरा
लगता है
चाँदनी चुभ रही थी
तुझे या काट
रहा है चाँद का पहरा
ख़ामोश रहे तुम
देर तलक और
मैंने भी
तुमसे ग़ुफ़्तगू न की
डरती हूँ
कहीं तुम रूठ कर
चले न जाओ पर
ऐसा भी क्या मिलना तुम्हारा
न तुम बोलो …….न मैं ….
तुम
मन के बड़े गहरे
न जाने किस छोर
तुम गोते लगाते हो
कैसे ……..तुम्हारी ठोर मैं जानू?
ये दमकती
रात भी जो तुम को
बेनूर लगे तो
किस रौशनी से तुम्हें
मैं रोशन करुँ ?
प्रेम की चमक
चाँदनी में निखर जाती है
पर तुम संग ये
बदरंग क्यूँ लगने लगी है?
तुम
मोहब्बत नहीं समझे
न उसकी कशिश को
अपने मैं का
दुःख तुम पर बहुत भारी है
तुम
नहीं समझे
चाँदनी की मोहब्बत
तो क्या जानोंगे मुझे और
मेरे प्यार को
ये उजली सी रात में तेरा
उतरा सा चेहरा
बेवज़ह का मातम
इस एक
मोहब्बत के पल कि
ख़ातिर …..उतार दो इसे
उतार दो इसे………..
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