Tuesday, 22 April 2014

अब तुम बिन जीना है ....

अब
तुम बिन जीना है

कितना मुश्किल है
ख़ुद को ये समझाना
यकीन
कर पाना कि
तुम अब नहीं हो ……..कहीं नहीं हो

तुम
संग आने वाली
शामों का इंतज़ार
कहीं नहीं है

तुम से
होने वाली रातों का
सफर अब नहीं है

तुम से
मिल कर आने वाला
सूरज अब
कभी नहीं आयेगा

ये शामें
यूँही बुझती जायेंगी

ये रातें
यूँही तड़पती रहेंगी

सूरज
अपना सा मुँह
ले कर चला जायेगा

अब
जो तुम नहीं हो
तो सब बदरंग है

न शामों की
रंगीनियाँ लुभायेंगी

न रातों को
चाँदनी मुस्कुराएंगी

न सूरज अपने
होने पर इतरायेगा

मुझ से मिल कर ये
सब खाली हाथ लौट जायेंगे

अपने होने का
सब शोक मनायेंगे

मैं 
तुम बिन
सुनी आँखों से
हर दिन को अलविदा करुँगी
और तारीख़ों के
मायाजाल संग
ज़िन्दगी निर्वाह करुँगी

अब
जो तुम नहीं हो
न जाने
मैं कैसे जिया करुँगी ……

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