Tuesday, 15 April 2014

मोहब्बत
कि रोशनी संग
साथ चलना था हमें
प्रेम के अलाव संग साथ
जलना था हमें
न जाने कब
हम से तुम हो गए और
मैं अकेला रह गया
रौशनी बुझती रही और
अलाव भी ठण्डा हो गया

मुझे ख़बर थी
मौसम बदलेगा
मगर
बेमौसम हो जायेगा 
पता न था
बारिशें और हवाएँ
सैलाब में तब्दील हो गयी
बस अँधेरा हो गया
घोर,घना, काला अँधेरा

तुम संग
जलना था मुझे
अपने आशियाँ के
उजालों के लिए मगर
तुम वक़्त के पतंगों से
घबरा कर बुझ गए,
डर गए 
आँधियों के तेज़ बहाव से
बह गए समय के साथ

मैं ठिठुरती रही 
बचती रही
इसी उम्मीद में रही
कि फिर जलूँगी तुम संग
पर ये हो न सका
वक़्त का दीया
थमता गया

मैं 
तुम संग 
जल न सकी पर
तुम बिन 
बुझ जरूर गयी……..

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