लोग पूछते है
प्यार वक़्त के गुज़रते
ख़त्म क्यूँ हो जाता है
क्यूँ
वैसा नहीं रहता
जैसे वक़्त
प्यार वक़्त के गुज़रते
ख़त्म क्यूँ हो जाता है
क्यूँ
वैसा नहीं रहता
जैसे वक़्त
शुरू होने से पहले था
क्यूँ
बदल जाता है, बिखर जाता है
दो प्यार करने वाले
एक वक़्त के
बाद अलग हो जाते है
उनके बीच का प्यार कहाँ
चला जाता है ……
क्यूँ
बदल जाता है, बिखर जाता है
दो प्यार करने वाले
एक वक़्त के
बाद अलग हो जाते है
उनके बीच का प्यार कहाँ
चला जाता है ……
कहाँ ??
इन
इन
सवालों पर
सोचा, फिकरा किया और
भूल गयी……..
नहीं
सोचा, फिकरा किया और
भूल गयी……..
नहीं
जानती थी
एक दिन यही सवाल
वक़्त से परे
एक दिन यही सवाल
वक़्त से परे
मुझे जीना सिखायेंगे
ख़ुद
जब प्यार के झरोखों
संग बैठी, झूमी
उसकी बहती धारा में
हिलोरें लेती रही तब
लगता था
ख़ुद
जब प्यार के झरोखों
संग बैठी, झूमी
उसकी बहती धारा में
हिलोरें लेती रही तब
लगता था
ये सब यूँही ……..
यूँही
सदा के लिए ऐसे ही रहेगा
ये समय मुझ संग है
और इसके
सदा के लिए ऐसे ही रहेगा
ये समय मुझ संग है
और इसके
गुज़रते लम्हों को
मैं और तुम से निकल
हम……..
मैं और तुम से निकल
हम……..
हम संग जियेंगे
पर
ये ख़्वाब था
जो हक़ीक़त कि
रात से निकल
सच के तेज़ उजाले संग
जल गया
सच्चाई कड़वी लगी
बहुत कड़वी …….
पर
ये ख़्वाब था
जो हक़ीक़त कि
रात से निकल
सच के तेज़ उजाले संग
जल गया
सच्चाई कड़वी लगी
बहुत कड़वी …….
पर यही
मेरे ज़ख्म भरती रही
और जाना कि
प्यार
मैं और तुम से निकल जब
हम के आँगन में आता है
और समय कि धूप में
ज़िन्दगी के रास्तों पर नंगे
पाँव चलता है तब
एक कमज़ोर पक्ष
स्वतः ही
जलन और तीख़ी
मेरे ज़ख्म भरती रही
और जाना कि
प्यार
मैं और तुम से निकल जब
हम के आँगन में आता है
और समय कि धूप में
ज़िन्दगी के रास्तों पर नंगे
पाँव चलता है तब
एक कमज़ोर पक्ष
स्वतः ही
जलन और तीख़ी
खार से घबरा कर
उलटा लौट जाता है
उस
घड़ी वो पक्ष अपने
पाँवों कि जलन और
उसके मरहम को ध्यान रख
सिर्फ अपना इलाज चाहता है
जबकि
उलटा लौट जाता है
उस
घड़ी वो पक्ष अपने
पाँवों कि जलन और
उसके मरहम को ध्यान रख
सिर्फ अपना इलाज चाहता है
जबकि
उसे इस बात कि
ख़बर भी नहीं होती
की उसके साथ
की उसके साथ
ज़िन्दगी कि धूप में
जलने वाला
कोई और भी था
ज़िन्दगी ने
जलने वाला
कोई और भी था
ज़िन्दगी ने
धूप और छाँव
बराबर हिस्से के साथ
बराबर हिस्से के साथ
सभी को बाँटी और
जब प्यार का घर बनाया
तो अक्सर ये सोचा गया
कि ''मेरे'' हिस्से कि धूप
''तुम'' रख लेना और
''तुम'' रख लेना और
छाँव ……. ''हमारी'' होगी
पर
पर
ऐसे कैसे?
धूप हिस्से कि तो छाँव भी
धूप बाँटी तो
धूप हिस्से कि तो छाँव भी
धूप बाँटी तो
छाँव क्यूँ नहीं?
होता यही है
जब प्यार ज़िन्दगी के
गुज़रते पल गिनने लगता है
और थकने लगता है
वो भी तब
जब प्यार
होता यही है
जब प्यार ज़िन्दगी के
गुज़रते पल गिनने लगता है
और थकने लगता है
वो भी तब
जब प्यार
अकेला पल गिने तो
सफ़र तन्हा हो ही जाता है
रोज़
रोज़
हर दिन यूँ
अकेले धूप में
अकेले धूप में
नंगे पाँव चलना और
पल गिनना…….
साथ
तब छूट ही जाता है
पल गिनना…….
साथ
तब छूट ही जाता है
हम से ‘मैं और तुम’ का
बँटवारा हो ही जाता है
और इस तरहा
प्यार का आँगन
सुना हो ही जाता है
प्यार खत्म हो ही जाता है………
और इस तरहा
प्यार का आँगन
सुना हो ही जाता है
प्यार खत्म हो ही जाता है………
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