Monday 30 December 2013

मैं अक्सर 
सँकरी, तंग काँटों से 
भरी अतीत की
गलियों से गुज़रा करती हूँ
जहाँ नफरतों से 
बदबूदाती ईर्षा की 
सीलन फ़ैली है
गलते दिनों की पपड़ियाँ
झड़ती रहती है
रातों की लाशों से 
राख उड़ती है
कुछ पोटलियाँ बंधी 
कहीं किसी मोड़ पर 
दिख जाती है ख्वाबों की
जो इंतज़ार के मैले पानी
से सनी लगती है
कितनी ही तारीख़े मडराती 
नज़र आती है उनपर
यही मेरी धूप ने
दम तोड़ दिया होगा
दीयों ने अपनी जात
बदल दी यही
और अरमानों ने
खुदखुशी की होगी
ख़ाली चेहरे से रंग
आँसुओं से बह गये
बुझती आँखों ने तभी
अंधकार का कफ़न
ओढ़ लिया
यही कहीं मेरी
चाहतों की दुनिया ने
तड़प कर 
अपनी साँसों को
अलविदा कहा होगा
तभी ये गलियां
अपनी ओर 
मुझे बुलाती है और
मैं अक्सर इन 
सँकरी, तंग काँटों से
भरी अतीत की 
गलियों से गुज़रा करती हूँ……..

3 comments:

  1. हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
    हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||

    शुभकामनायें आदरणीया

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