Wednesday, 5 March 2014

शाम होते ही
दिल घबराने लगता है
इन गुज़रते
पहरों को टाला नहीं जा सकता
और मुझसे
इनको गुज़ारा नहीं जाता

सोचती हूँ
काश ....... सब उलट हो जाये
रात भर
दिन के काम काज़ हो जायें
और दिन में
मैं कहीं गायब हो जाऊँ
दिन
गुज़ारा नहीं जाता और
ये रातें बीतती नहीं

पर ये सब
मुमकिन ही नहीं
मुझे ये रातें पसंद नहीं

काश
ये रातें इन २४ घंटों से
गायब हो जायें
या मैं
इन रातों से …….काश!!!!!

3 comments:

  1. ये जो काश शब्द है न ... ये ज़िन्दगी के दो टुकड़े कर देता है ....मुझे ये राते ही पसंद नहीं .... एक बहुत बड़ी बात कही .. शुक्रिया .

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