Saturday, 15 March 2014

नन्हीं नन्हीं
ख्वाहिशें जन्मी है
जैसे पतझड़ के बाद
नन्हीं कलियाँ
नन्ही कोपले

बड़े आग़ाज़ का
छोटा सा ख़ाका
बड़ी उम्मीदों की
छोटी सी किरन

उगने दो इन्हें
पनपने दो
कल की धूप के लिए
इनके साये बनने दो

करो तैयारी
खूबसूरत शुरुआत कि
सजाओ बस्ती
अपने जहान कि
के फिर
मौसम ने करवट ली है

फिर 
क़िस्मत ने दवात दी है
फिर खुशियों ने रहमत की है

जगने दो ख्वाहिशें
पकने दो ख्वाहिशें
के नया कुछ होने को है
परिवर्तन होने को है

इंतज़ार ख़त्म होने को है

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