Monday 10 March 2014

जैसे
कोई सुरंग है वक़्त कि
तेरे मेरे दरमियाँ
लम्बी ....... बहुत लम्बी
जिसके बीच
मज़बूत पारदर्शी
शीशे का दरवाज़ा लगा है
एक तरफ़ उसके तुम और
दूजी तरफ़ मैं हूँ
उलझन ये की
इस पर ताला
लगा है जो मेरी ओर है
पर उसकी चाबी
तुम्हारे पास है

कहो अब.......
ये दरवाज़ा कैसे खुले?
तुम इस
वक़्त की सुरंग के
उस तरफ़ से
इस ओर तक
मेरे पास तक कैसे आओगे?
मझे कैसे पाओगे?

कहो…….. क्या मुझे पा सकोगे ?

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