Tuesday 3 September 2013

कई घन्टो बैठ
ख़ामोशी के दामन में
आसमां को नापते
तारों को आवाज़ दे
हवाओं की नब्ज़ धाम
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

वक़्त को नजरो में उतार
अश्कों से सपने छान
गीले अरमानो को
अपनी तड़प की आहों
से बार बार सुखा
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

पैरों में पड़े जख्म
से गिन गिन काँच हटाते
खून के दागो को
दुपट्टे से छुडाते
बे सर पैर के बहाने बनाते
सर को ज़मीं से बतियाते
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने

हर दिन हर पहर
ज़ुबान पर ताले लगाये
निहारते अनजाने साये
सबकी बातों पर
खुद को समझाते
हर आवाज़ पर आँसू
बहाते ......
अपने आप से
तुम्हे भूल जाने के 
न जाने कितने वादे किये मैंने.....

2 comments:

  1. दिल की कशमकश, भी अजीब है बहुत
    भूलना चाहूँ जिसे... वो करीब है बहुत....

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