Friday, 3 October 2014

दिन को इंतज़ार
रात को चाहत
लिखती हूँ ....तुम्हारे लिए

हर पल मुलाकात,
बंद होठों से
इज़हार लिखती हूँ....तुम्हारे लिए

उम्र अधूरी
ज़िन्दगी को
पूरी लिखती हूँ...तुम्हारे लिए

अल्फाज़
कम लगे शायद ...
मैं खुद को लिखती हूँ .....तुम्हारे लिए

Monday, 8 September 2014

हदें बेहतर है पर ..

बदलना
अच्छा है ....पर एक हद तक

और वो हद
खुद तय करनी होती है
ऐसी हद जिसके भीतर
किसी का दिल न टूटे
कोई रोये न....बीते लम्हें याद कर
वादे याद कर मलाल न करे

वो हद जो
दूर करे पर नफरत न पलने दे
याद रहे पर इंतज़ार न रहने दे


रिश्तों में बदलना
कभी भी सुख नहीं देता
चुभन...दर्द...अफ़सोस और
बेचैनी लिए
पल-पल ज़िन्दगी गिनता है

इन सब से परे
कितना आसान है
किसी बदलाव से पहले
बात करना .... गलतफ़हमियाँ मिटाना
हदों के पायदानों से निकल
कुछ कदम ''साथ'' चलना और
कुछ छूटने से पहले
अपने हासिल को ''अपना कहना''
हक जताना...गिला करना और
मनाना .....

हदें बेहतर हैं पर
बदलाव से पहले...हदें चुनने से पहले
झांके अपनों के मन में भी
शायद फिर
बदलाव की जरुरत न लगे.....

Wednesday, 27 August 2014

तुम्हें
पाना बहुत आसान है
पर मैं इतनी
सरलता से तुम्हें नहीं
पाना चाहती


चाहती हूँ
तड़पना...तुम्हें
याद कर रोना
तुम्हारे तसवुर में रातें बिताना
भूल जाना दुनिया को और
बस तुम्हें....सिर्फ तुम्हें
चाहना


तुम्हें
ज़िन्दगी
बनाने से पहले
ज़िन्दगी को तुमसे
तोलना चाहती हूँ
एक वजह नहीं हर वजह में
तुम्हें ढूँढना चाहती हूँ


तुम्हें पाना
मुश्किल हो जाये इतना
की तुम्हें पा कर
मैं सब हार जाऊं
सिर्फ तुम रहो मेरे पास
सिर्फ एक तुम .....

Thursday, 3 July 2014

इतनी
फुर्सत नहीं हैं मेरे पास
की ज़रा ठहरूं और
गिनू तुम्हारे शिकवे
देखूं अपनी गहराती आँखों के
काले घेरे .....नापूं कलाई की
कमजोरी को
विचारू झड़ते बालों को और
उलझा करूं न खाने पर

करूँ भी तो क्यूँ ....किस लिए
कोई वजह नहीं लगती
शिकवे, शिकायतें और ख्याल
उसके लिए जो
ज़िन्दगी को जीये .....जीने सा

मैं तो नहीं हूँ .....हाँ नहीं हूँ ऐसी
बस यूँही दिन जो जा रहे है
आँखों में, बातों में .....तारीखों में
बस यही है जीवन शायद
फिर क्यूँ करना
जान को कोई झमेला....
क्यूँ विचार करूं .....

बस आज में जब जीना है
तो क्यूँ इतनी
बेवजह का दर्द मोल लेना है

कहाँ इतनी फुर्सत मुझे
की तेरी कमीज़ के बटन लगा सकूँ
तेरे बालों में हाथ फिरा सकूँ
शाम-सवेरे तेरे होठों पर
मदमाता चुम्बन रख सकूँ
अपने लिए फिर आईना
खरीद सकूँ
अपने दुप्पटे से झड़े सितारे फिर
से उसमे सजा सकूँ ......

कहाँ इतनी फुर्सत मुझे ....

Friday, 23 May 2014

वो कौन है ?

कई बार
ख्याल आता है
जैसे अपनी
कहानी सुना रही हूँ किसी को
मेरा हर घटित लम्हा जैसे
कहानी है और
मैं उसको जी रही हूँ

मेरा सोना
जागना, रोना, हँसना
सभी कहानी में है
लिखा हुआ था कहीं किसी ने
और जी रही हूँ मैं

पर
किसे सुना रही हूँ ?
नहीं पता
कब तक सुनाऊँगी ?
नहीं पता
क्या सुनाती रहूँगी ?
ये भी नहीं पता

अचानक हुई
दुर्घटना के बाद लगा
अब क्या ?

जिसे सब
सुना रही थी वो
अब कहाँ गया ?

खो गया ?
डर गया होगा
शायद …..मैं रहूँ …. रहूँ….
ये सोच उसने
अपना ख्याल बदल लिया

मैंने भी
सुनाना छोड़ कर
लिखना शुरू कर दिया
अब सोचती हूँ
अगर मैं
कल दुनिया से गयी तब
कौन मेरी कहानी सुनेगा ?
और कैसे ?

लिख रही हूँ
अब अपनी कहानी और
ढूंढ रही हूँ एक उसको
जो सम्भाल सके
मेरी कहानी का बोझ

जो मेरी
ज़िन्दगी की दास्ताँ को
मेरी पूँजी समझ अपना ले और
मेरी पूँजी से
मेरे सपने पुरे कर सके
मेरे जाने के बाद ……

पर वो
कौन होगा ?
जो समझेगा मेरे सपने
अपने सपनो जैसे
वो कौन है? …………
तुझसे मिल
चाहत ने फिर सर
उठाया है

तेरी
नज़र कि छाव पा कर
मौहब्बत का फूल
मुस्कुराया है

प्यासी
चली थी
सहरा में जैसे
तेरे
काफ़िले में कर
दिल को सुकूं आया है

चुभन थी साँसों में,
तेरे हाथों को छू कर
जाने
ये कैसा करार आया है

बिखरे
ख्वाब बटोर लायी थी
तूने
गले लगा कर
उनका हार मुझे पहनाया है

तू मिला
रौशनी सा ऐसे
लगता है मेरे
दर पे खुदा आया है ……….