Thursday 15 January 2015

चाहती थी
कुछ यूँ प्रेम करना कि
सदियों तक हमारा प्रेम
लोग याद करें
जैसे ताजमहल...

पर वो
पत्थर था और
है भी ....प्रेम उससे दूर हो गया
अब बचे हैं तो दीवारों पर पड़े
कुछ खुरदुरे नाम और
नाम पर चली कुछ आड़ी-तिरछी लकीरें

इसलिए
अब तमन्ना है
सादी मोहब्बत की
जिसे लोग दोहराएं
जैसे अमृता-इमरोज़

मुझे
तुम मिले और
देखो मैं अमृता हो गयी
और तुम
तुम तो थे ही इमरोज़
तभी तो मुझे मिले....है न ....

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